अपने जिन्दगी से दुःखों को दूर हटाकर सुख पाने के सरल मार्ग ।। - स्वामी जी महाराज.

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अपने जिन्दगी से दुःखों को दूर हटाकर सुख पाने के सरल मार्ग ।।

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अपने जिन्दगी से दुःखों को दूर हटाकर सुख पाने के सरल मार्ग ।। Dukhon Se Chhutkara Pane Ka Marg.

 Swami Ji.



मित्रों, इस भौतिक संसार में हम इन्सान अपने मूल भगवान से दूर होकर रुपया-पैसा, धन-दौलत आदि के पीछे भागने में ही अपना पुरुषार्थ समझते हैं । परन्तु ये बड़ी-बड़ी उपलब्धियां, बड़े-बड़े सम्मान हमारी आन्तरिक तड़प तथा हमारे आन्तरिक दुखों को कम नहीं करते । हाँ सांसारिक वैभवों के चमक-दमक से थोडे समय के लिए क्षणिक प्रशन्नता अवश्य ही मिलती है । परन्तु इन्हें पाकर भी हमारी आन्तरिक तड़प और बेचैनी कम नहीं होती अपितु बढ़ती ही चली जाती है ।।


जितना ही हम इनके पीछे भागते हैं, ये संसार की माया हमें और उतनी ही अधिक मात्रा में अपने वश में करती चली जाती है । हम भगवान के अंश होकर भी भगवान से बहुत दूर हैं जिसके वजह से हमारी तड़प और अधिक बढ़ती ही रहती हैं । भगवान की कृपा से जब कोई दिव्य आत्मा आकर हमारा हाथ भगवान के हाथ में थमाती है तब सही मार्ग धीरे-धीरे दिखने लगता है । परन्तु ये सांसारिक माया तब और अधिक मजबूती से हमारी बेचैनी बढ़ाने लगती है ।।

 Swami ji Silvassa.


मित्रों, अगर हम चाहते हैं कि हमारा इहलोक और परलोक दोनों संवर जाय तो हमें सन्तों की बातों को गम्भीरता से लेनी चाहिये । तभी इस सांसारिक माया से हमें छुटकारा मिल सकता है वरना ये दुःख, तकलीफ हमेशा यूँ ही जारी रहेंगी । साथ ही इस संसार कि माया को भी हम अपने जिन्दगी में सहजता से प्राप्त कर सकते हैं । क्योंकि ये माया त्याग से ही प्राप्त होती है इसे जितना ही हम पकड़ने का प्रयत्न करेंगे, रेत की तरह उतनी ही ये फिसलती चली जायेगी ।।


एक बार कि बात है, कि एक छोटा सा बच्चा अपने अमीर पिता के साथ उनकी ऊँगली थामे नदी किनारे सैर कर रहा था । छोटा सा बच्चा नदी किनारे पानी के बहाव को देख रहा था और उछलती-फुदकती नन्हीं मछलियों को देखकर खुश हो रहा था । बच्चा नदी में रहने वाली मछलियों को बड़े प्यार से देखते हुये चल रहा था । कभी आगे जाता तो कभी पीछे आता और मछलियों को हाथ से छूना-पकड़ना चाहता था परन्तु वो हाथ नहीं आ रही थीं ।।

 Swami Ji Maharaj.


मित्रों अचानक ही थोड़ी दूर पर उस बच्चे को एक मछली दिखी जो गलती से नदी के किनारे पे चली आयी थी, मिल गयी । वह मछली बुरी तरह से तड़प रही थी जिसे देखकर उस नन्हें बच्चे की तड़प भी बढ़ने लगी उससे देखी नहीं गयी । वो उत्साह पूर्वक अपने पापा से बोला पापा मछली तड़प रही है शायद भूखी होगी चलो इसे उत्तम-उत्तम पकवान खिलाते हैं । पापा मुस्कराये परन्तु बच्चा परेशान हो गया और बोला पापा मछली को शायद नींद आ रही होगी तो इसे ले चलो घर ले जाकर इसे अपने गद्देदार पलंग पर सुलाते हैं ।।


यह सुनकर पापा ने कहा नहीं बेटे इस मछली के तडप को सोना-चांदी और रुपया-पैसा आदि से दूर नहीं कर सकते । इसकी तड़प तो वापिस नदी के जल में जाने के बाद ही दूर होगी । इतना सुनना था कि बच्चे ने उसे उठाकर नदी में डाल दिया । फिर क्या था मछली की तड़प दूर हो गयी और नदी में तैरने लगी । ठीक इसी मछली की तरह हम और आप भी तड़प रहे हैं । द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते । तयारन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यश्रत्रन्यो अभिचाकशीति ।।

 Bhagwat Katha Swami Ji Maharaj.




अभिप्राय ये है, कि परमात्मा भी हमारे साथ ही है परन्तु वो भोक्ता नहीं है इसीलिये वो ईश्वर है और हम भोगों को भोगने के चक्कर में फँस जाते हैं । परन्तु अगर हम भोगों को भी परमात्मा का प्रसाद समझकर ग्रहण करें अर्थात यज्ञ-यागादी के साथ ही दान-धर्म विस्तार जैसे कार्यों को करते रहें तो हम भो-भोगते हुये भी द्रष्टा के समान हो जायेंगे और परमात्मा के सान्निध्य को प्राप्त करने के अधिकारी हो जाते हैं ।।


 Bhagwat Katha Swami Dhananjay Maharaj.


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