पूजा-भक्ति, हमारा स्वास्थय एवं शंख के माध्यम से लक्ष्मी की प्राप्ति ।। Shankh And Lakshmi Prapti And Puja-Path. - स्वामी जी महाराज.

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पूजा-भक्ति, हमारा स्वास्थय एवं शंख के माध्यम से लक्ष्मी की प्राप्ति ।। Shankh And Lakshmi Prapti And Puja-Path.

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जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, शंख का नाम जैसे ही कोई भी लेता है, स्वतः ही पूजा-पाठ-भक्ति-आराधना का ख्याल मन में आ जाता है । परन्तु शंख केवल धर्म में ही नहीं अपितु हम मानवों के जीवन और उसके स्वास्थ्य से भी गम्भीर सम्बन्ध है । आज हम इसी विषय पर चर्चा करेगे कि शंख का स्वास्थ्य में, धर्म में, ज्योतिष में तथा हमारे सम्पूर्ण जीवन में क्या उपयोग है ।।

सर्वप्रथम हम ये जानते हैं, कि शंख की आकृति कैसी है ? शंख की आकृति या फिर बनावट जिसे कहते हैं, वो लगभग हमारी पृथ्वी की संरचना के समान ही है । नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार शंख बजाने से खगोलीये ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । ये उर्जा कई प्रकार के रोगों के कीटाणु-जीवाणुओं का नाश कर लोगो के अन्दर नवीन ऊर्जा एवं शक्ति का संचार करता है ।।

मित्रों, शंख में १००% कैल्शियम ही कैल्शियम होता है । अगर इस शंख में रात को पानी भर के रख देने और सुबह उसे पी लेने से हमारे शरीर में कैल्शियम के मात्रा की पूर्ति होती है । शंख बजाने से योग की तीन प्रकार की क्रियायें एक साथ हो जाती है - जिसे कुम्भक, रेचक और प्राणायाम कहा जाता है ।।

शंख बजाने से बजाने वाले को कभी भी हृदयाघात नहीं होता, रक्तचाप की अनियमितता ठीक हो जाता है इतना ही नहीं दमा और मंदाग्नि जैसे खतरनाक रोग में भी सहज ही लाभ होता है । शंख बजाने से फेफड़े पुष्ट होते है तथा शंख में पानी रख कर पीने से मनोरोगियों को बहुत ज्यादा लाभ होता है जिससे उसकी उत्तेजना कम होती है ।।

मित्रों, शंख की ध्वनि से मनुष्य के दिमाग एवं स्नायु तंत्र सक्रिय रहते हैं । इसका धार्मिक महत्व तो आप सभी जानते ही हैं, फिर भी बताता हूँ । दक्षिणावर्ती शंख को साक्षात् माता महालक्ष्मी का स्वरुप कहा जाता है । इसके बिना माता लक्ष्मी की आराधना सम्पूर्ण नहीं मानी जाती है ।।

समुन्द्र मंथन के दौरान १४ रत्नों में से शंख एक रत्न है । सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए इसे अपने घर में अवश्य ही रखना चाहिये । शंख में दूध भर कर रुद्राभिषेक करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है । घर में शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा का एवं अतृप्त आत्माओं का निर्वास हो जाता है ।।

मित्रों, दक्षिणावर्ती शंख से पितरों का तर्पण करने से पितरों के आत्माओं की शांति होती है । शंख से स्फटिक के श्री यन्त्र पर श्रीसूक्त से अभिषेक करने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । सोमवार को शंख में दूध भर कर भगवान शिव का अभिषेक करने से चन्द्रमा की अशुभ दशा निवृत्त हो जाती है ।।

मंगलवार को शंख बजा कर सुन्दर काण्ड का पाठ करने से मंगल ग्रह का कुप्रभाव कम होता है । शंख में चावल भर के उसे एक लाल कपडे में लपेट कर तिजोरी में रखने से माँ महालक्ष्मी एवं माता अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है । बुधवार को भगवान शालिग्राम का शंख में जल और तुलसीदल डालकर अभिषेक करने से बुध ग्रह का कुप्रभाव ठीक हो जाता है । शंख को केसर से तिलक कर पूजा करने से भगवान नारायण एवं बृहस्पति ग्रह की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।।

मित्रों, शंख सफ़ेद कपड़े में रखने से शुक्र ग्रह बलि होता है । शंख में जल ड़ालकर सूर्य देव को अर्घ्य देने से भगवान सूर्य देव प्रशन्न होते है । शंख की पूजा करने से हर प्रकार के ऐश्वर्ये प्राप्त होते हैं । दक्षिणावर्ती शंख पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है । यह शंख जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी की नित्य ही वृद्धि होती है । इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत रूप से किया जाता है ।।

वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है । इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है । इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं । दक्षिणावर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं नर और मादा । जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर तथा जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है ।।
मित्रों, एक विशेष बात बता दूँ, कि दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए । शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करें । प्रतिदिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य-पुष्प से पूजा करें और तुलसी दल चढ़ाएं । प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है । द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है । तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है । चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से संतान प्राप्ति होती है ।।

महाभारत में लगभग सभी यौद्धाओं के पास शंख होते थे । उनमें से कुछ यौद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे । जैसे भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी । अर्जुन के पास देवदत्त, युधिष्ठिर के पास अनंतविजय, भीष्म के पास पोंड्रिक, नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक था । सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी । कई देवी देवतागण शंख को अस्त्र रूप में धारण किए हुए हैं । महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु शंख नाद किया गया था ।।
मित्रों, अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि । भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है । यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है । अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था । श्रीकृष्ण का "पांचजन्य" नामक शंख तो अद्भुत और अनूठा था, जो महाभारत में विजय का प्रतीक बना ।।


।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

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।। नमों नारायण ।।

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