जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, इसमें कोई संशय नहीं कि गुरु की कृपा से सभी कार्य बन जाते हैं । मनुष्य को अपनी सदगति के लिये अपने गुरु के द्वारा बताये गये मार्ग का अनुशरण करना ही उसके लिये श्रेयस्कर होता है । सत्संग में आने तथा सेवा करने से ही गुरु की कृपा प्राप्त होती है । सन्त समागम कहीं दूरदराज इलाके में भी हो तो वहां पूरी श्रद्धा और निष्ठा से बढ़-चढ़कर सभी को भाग लेना चाहिये ।।
ये पूर्ण सत्य है, कि सेवा भाव से ही ईश्वर की कृपा मिलती है और सेवा का ज्ञान सत्संग से ही प्राप्त होता है । शास्त्रों में सत्संग की महिमा अनन्तानन्त गाई गयी है । श्रीरामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में गोस्वामी जी ने लंकिनी से कहलवाया है, कि - तात स्वर्ग आपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग । तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ।। अर्थात - हे तात ! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुख भी लव माने क्षण मात्र के सत्संग के बराबर भी नहीं हो सकते ।।
मित्रों, क्षण मात्र के सत्संग से जो वास्तविक आनन्द, वास्तविक सत्य स्वरूप का ज्ञान और जो सुख मिलता है, वैसा सुख स्वर्ग में भी नहीं मिलता । इस प्रकार सत्संग से मिलने वाला सुख ही वास्तविक सुख है । योगवाशिष्ठ में ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी द्वारा शम, संतोष, विचार और सत्संग कि महिमा बतायी गयी है । उन्होंने कहा है, कि ये संसाररूपी समुद्र से तरने का अन्तिम मार्ग सत्संग ही हैं ।।
संतोष परम लाभ है, विचार परम ज्ञान है, शम परम सुख है और सत्संग ही परम गति है । सत्संग का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा है, कि विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम् । सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधुसमागमः ।। अर्थात - हे प्रबुद्धजनों ! वैसे तो सभी के लिये परन्तु विशेष करके मनुष्यों के लिए इस संसार से तरने के लिये साधुओं का समागम ही अन्तिम उपाय है ।। मित्रों, सत्संग बुद्धि को अत्यंत सात्त्विक बनाने वाला, अज्ञानरूपी वृक्ष को काटने वाला एवं मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला सबसे प्रबल शस्त्र है । जो मनुष्य सत्संगतिरूप शीतल एवं स्वच्छ गंगा में स्नान करता है उसे दान, तीर्थ-सेवन, तप और यज्ञ करने की भी क्या आवश्यकता है ? कलियुग में सत्संग जैसा सरल साधन दूसरा कोई नहीं है । भगवान शंकर भी माता पार्वतीजी को सत्संग की महिमा बताते हैं ।।
शिव जी कहते हैं, कि उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ।। इतना ही नहीं, सभी ब्रह्मवेत्ता सन्तजन भी स्वप्न समान इस जगत में सत्संग एवं आत्म-विचार से सराबोर रहने का ही ज्ञान बाँटते हैं । वे हमें सदैव आत्मचिंतन में निमग्न रहने का ही उपदेश करते हैं । शास्त्रों के अध्ययन और सत्संग द्वारा ब्रह्मचिंतन में हमारी रूचि बढ़ाने और हमारी श्रद्धा को दृढ़ करने का कार्य सन्तजन सत्संग के द्वारा ही करते हैं ।। मित्रों, सत्संग के प्रति हमारी निष्ठा और सत्संग के प्रति सम्मान का भाव ही हमें गुरुओं, सन्त-महात्माओं की दृष्टि में लाते हैं । सत्संग ही सन्तजनों के माध्यम से हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करवाता है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, कि बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते । वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ।। अर्थात - बहुत जन्मों के अंत के जन्म में कोई ऐसा ज्ञानी महात्मा मिलता है, जिसकी एक दृष्टि मात्र से हमारा कल्याण हो जाता है ।।
इसलिये सत्संग हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिये । तुलसी यह संसार में सबको मिलिये धाय । ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाय ।। इस तरह की बातों का ज्ञान सत्संग के अलावा आज के इंगलिस सभ्यता में आपको कहीं भी नजर नहीं आएगी । इसलिये कहीं भी किसी भी संत-महात्मा का कोई प्रवचन सत्संग हो आप अपने बच्चों के साथ वहां अवश्य ही जायें । इसी से मनुष्य मात्र का कल्याण संभव है ।। ।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
मित्रों, इसमें कोई संशय नहीं कि गुरु की कृपा से सभी कार्य बन जाते हैं । मनुष्य को अपनी सदगति के लिये अपने गुरु के द्वारा बताये गये मार्ग का अनुशरण करना ही उसके लिये श्रेयस्कर होता है । सत्संग में आने तथा सेवा करने से ही गुरु की कृपा प्राप्त होती है । सन्त समागम कहीं दूरदराज इलाके में भी हो तो वहां पूरी श्रद्धा और निष्ठा से बढ़-चढ़कर सभी को भाग लेना चाहिये ।।
ये पूर्ण सत्य है, कि सेवा भाव से ही ईश्वर की कृपा मिलती है और सेवा का ज्ञान सत्संग से ही प्राप्त होता है । शास्त्रों में सत्संग की महिमा अनन्तानन्त गाई गयी है । श्रीरामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में गोस्वामी जी ने लंकिनी से कहलवाया है, कि - तात स्वर्ग आपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग । तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ।। अर्थात - हे तात ! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुख भी लव माने क्षण मात्र के सत्संग के बराबर भी नहीं हो सकते ।।
मित्रों, क्षण मात्र के सत्संग से जो वास्तविक आनन्द, वास्तविक सत्य स्वरूप का ज्ञान और जो सुख मिलता है, वैसा सुख स्वर्ग में भी नहीं मिलता । इस प्रकार सत्संग से मिलने वाला सुख ही वास्तविक सुख है । योगवाशिष्ठ में ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी द्वारा शम, संतोष, विचार और सत्संग कि महिमा बतायी गयी है । उन्होंने कहा है, कि ये संसाररूपी समुद्र से तरने का अन्तिम मार्ग सत्संग ही हैं ।।
संतोष परम लाभ है, विचार परम ज्ञान है, शम परम सुख है और सत्संग ही परम गति है । सत्संग का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा है, कि विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम् । सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधुसमागमः ।। अर्थात - हे प्रबुद्धजनों ! वैसे तो सभी के लिये परन्तु विशेष करके मनुष्यों के लिए इस संसार से तरने के लिये साधुओं का समागम ही अन्तिम उपाय है ।। मित्रों, सत्संग बुद्धि को अत्यंत सात्त्विक बनाने वाला, अज्ञानरूपी वृक्ष को काटने वाला एवं मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला सबसे प्रबल शस्त्र है । जो मनुष्य सत्संगतिरूप शीतल एवं स्वच्छ गंगा में स्नान करता है उसे दान, तीर्थ-सेवन, तप और यज्ञ करने की भी क्या आवश्यकता है ? कलियुग में सत्संग जैसा सरल साधन दूसरा कोई नहीं है । भगवान शंकर भी माता पार्वतीजी को सत्संग की महिमा बताते हैं ।।
शिव जी कहते हैं, कि उमा कहउँ मैं अनुभव अपना । सत हरि भजन जगत सब सपना ।। इतना ही नहीं, सभी ब्रह्मवेत्ता सन्तजन भी स्वप्न समान इस जगत में सत्संग एवं आत्म-विचार से सराबोर रहने का ही ज्ञान बाँटते हैं । वे हमें सदैव आत्मचिंतन में निमग्न रहने का ही उपदेश करते हैं । शास्त्रों के अध्ययन और सत्संग द्वारा ब्रह्मचिंतन में हमारी रूचि बढ़ाने और हमारी श्रद्धा को दृढ़ करने का कार्य सन्तजन सत्संग के द्वारा ही करते हैं ।। मित्रों, सत्संग के प्रति हमारी निष्ठा और सत्संग के प्रति सम्मान का भाव ही हमें गुरुओं, सन्त-महात्माओं की दृष्टि में लाते हैं । सत्संग ही सन्तजनों के माध्यम से हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करवाता है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, कि बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते । वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ।। अर्थात - बहुत जन्मों के अंत के जन्म में कोई ऐसा ज्ञानी महात्मा मिलता है, जिसकी एक दृष्टि मात्र से हमारा कल्याण हो जाता है ।।
इसलिये सत्संग हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिये । तुलसी यह संसार में सबको मिलिये धाय । ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाय ।। इस तरह की बातों का ज्ञान सत्संग के अलावा आज के इंगलिस सभ्यता में आपको कहीं भी नजर नहीं आएगी । इसलिये कहीं भी किसी भी संत-महात्मा का कोई प्रवचन सत्संग हो आप अपने बच्चों के साथ वहां अवश्य ही जायें । इसी से मनुष्य मात्र का कल्याण संभव है ।। ।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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