जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, भक्ति बिना, भगवान के दर्शन नहीं होते, और जीवन वृथा ही बीत रहा होता है । और यही दुःख का कारण है ।।
"शरीरं सुरुपं नवीनं कलत्रं धनं मेरुतुल्यम् यशश्चारु चित्रम् ।।
हरिरंघ्रिपद्ये मनश्चेन्न लग्नं ततः किम ततः किम ततः किम ततः किम् ।।"
अर्थ:- सुन्दर शरीर, नई नवेली पत्नी, मेरु पर्वत जैसा धन और पुष्कल कीर्ति तो हो, किन्तु मन प्रभु के चरणोँ मे न लगा हो, तो उन सबसे क्या लाभ ?
इनसे क्या हुआ ? क्या मिला ? कुछ भी तो नही । जगत् की प्रतिष्ठा, धन, विद्वता अन्तकाल मेँ कुछ भी काम नही आती । जो विद्या अन्तसमय निरर्थक और निरुपयोगी ही रह जाय, उससे लाभ ही क्या ?
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।। नमों नारायण ।।
मित्रों, भक्ति बिना, भगवान के दर्शन नहीं होते, और जीवन वृथा ही बीत रहा होता है । और यही दुःख का कारण है ।।
"शरीरं सुरुपं नवीनं कलत्रं धनं मेरुतुल्यम् यशश्चारु चित्रम् ।।
हरिरंघ्रिपद्ये मनश्चेन्न लग्नं ततः किम ततः किम ततः किम ततः किम् ।।"
अर्थ:- सुन्दर शरीर, नई नवेली पत्नी, मेरु पर्वत जैसा धन और पुष्कल कीर्ति तो हो, किन्तु मन प्रभु के चरणोँ मे न लगा हो, तो उन सबसे क्या लाभ ?
इनसे क्या हुआ ? क्या मिला ? कुछ भी तो नही । जगत् की प्रतिष्ठा, धन, विद्वता अन्तकाल मेँ कुछ भी काम नही आती । जो विद्या अन्तसमय निरर्थक और निरुपयोगी ही रह जाय, उससे लाभ ही क्या ?
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