हस्तौ च कर्मसु मनस्तव पादयोर्न:।।
स्मृत्यां शिरस्तव निवासजगत्प्रणामे,
दृष्टि: सतां दर्शनेअस्तु भवत्तनुनाम्।।
दृष्टि: सतां दर्शनेअस्तु भवत्तनुनाम्।।
अर्थ:- हे प्रभो ! हमारी वाणी आपके मंगलमय गुणोंका वर्णन करती रहे । हमारे कान आपकी रसमयी कथामें लगी रहें । हमारे हाथ आपकी सेवा में और मन आपके चरण-कमलों की स्मृति में रम जाएँ । यह सम्पूर्ण जगत् आपका निवास-स्थान है । हमारा मस्तक सबके सामने झुका रहे ।
नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।। Sansthanam.
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