जय श्रीमन्नारायण,
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।।
पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः ।। 3 ।।
अर्थ:- रस के मर्मज्ञ भक्तजनों ! यह श्रीमद्भागवत वेदरूप कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है । श्रीशुकदेवरूप तोते के मुख का संबन्ध हो जाने से यह परमानन्दमयी सुधा से परिपूर्ण हो गया है। इस फल में छिलका, गुठली आदि त्याज्य अंश तनिक भी नही है।।।।
यह मूर्तिमान रस है। जब तक शरीर में चेतना रहे, तबतक इस दिव्य भगवद रस का निरंतर बार-बार पान करते रहो। यह पृथ्वीपर ही सुलभ है ।।3।।
तारीख 12/03/2013 से 19/03/2013 तक, गैस एजेंसी के पीछे, फजलगंज, सासाराम, बिहार में स्वामी श्री धनञ्जय जी महाराज के श्री मुख से अष्ट दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का रसमय आयोजन है, आप सभी सादर आमंत्रित हैं ।।।।
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।।।। नमों नारायण ।।।।
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