Swami Shri Dhananjay Ji Maharaj.
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जय श्रीमन्नारायण,
ईश्वर, प्रकृ्ति और जीवन का जो ज्ञान है---वो हैं वैदिक ज्ञान. सृ्ष्टि के प्रारम्भ में मानव की भलाई तथा उसके ज्ञान के लिए अग्नि, वायु, अंगिरा तथा आदित्य ऋषियों द्वारा क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का ज्ञान प्रकाशित किया गया ।।।
भारत के प्राचीन ऋषियों नें आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा ईश्वर, प्रकृ्ति और आत्मा का अध्ययन किया, उनकी खोज की. अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा लोक-लोकान्तरों का पता लगाया. मृ्त्यु के बाद पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्रतिपादित किया. इतना ही नहीं परमात्मा और आत्मा के सम्बंध और रूप की खोज की. परमात्मा अनन्त है, उसकी सृ्ष्टि अनन्त है. इस सृ्ष्टि का पार न तो वैज्ञानिक ही पा सके और न ऋषि या योगिजन ही ।।।
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परमात्मा द्वारा इस सृ्ष्टि या कालचक्र की रचना के पीछे उसका कौन सा मंतव्य सिद्ध होता है, ये हम ये भी नहीं जानते । योगी योग के द्वारा और वैज्ञानिक खोज के जरिए आत्मा, परमात्मा और प्रकृ्ति का युगों से अन्वेषण होते आ रहा हैं, और दोनों का मूलभूत उदेश्य भी एक ही हैं, परन्तु मार्ग भिन्न भिन्न ।।।।
यज्ञदानतपोभिर्वा वेदाध्ययनकर्मभि:।
नैव द्रष्टुमहं शक्यो मद्भक्तिविमुखै: सदा॥
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अर्थात,' जो मेरी भक्ति से विमुख है, यज्ञ, दान, तप और वेदाध्ययन करके भी वे मुझे नहीं देख सकते।' यह घोषणा किसी अन्य की नहीं, अपितु स्वयं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने की है। भक्त और भगवान की चरम स्थिति 'एकाकार' है।।।।
अर्थ यह कि भक्ति जब अपने चरम को स्पर्श करने लगती है तब भक्त और भगवान एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं.... एकाकार हो जाते हैं। ऐसे में शिव कौन है और साधक या सधिका कौन में अंतर ही कहां रह जाता है। रामानुजाचार्य, शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य तथा माधवाचार्य आदि ऐसे सैकड़ों नाम हैं, जो भक्ति के मिसाल बनकर पृथ्वी पर युगों-युगों तक भक्ति की भावधारा को गति दे रहे हैं।।।
आधुनिक भारत में भी ऐसे कल्याणकारी संतों एवं सिध्दों की कभी कमी नहीं रही है। भक्ति और तप की इस मंगलकारी व परम कल्याणकारी एक नाम है - परिव्राजक श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी।।।
प्रभु श्री नारायण जो की श्री लक्ष्मी देवी एवं ब्रह्मादिक देवों को भी माया के जरिये नचाने वाले हैं । जिनकी कथा समय-समय से सनकादि नारद आदि प्रवृति के ऋषियों ने कहकर भक्तजनों को कृत्य-कृत्य करते हुए स्वयं को भी कृतार्थ किया।।।।
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उसी परंपरा को आज भी पृथ्वी पर कई संतों के द्वारा प्रवाहवान किया जा रहा है। परंतु जीयर स्वामी जी पिछले दशकों से गंगा की पतित पावनी धारा के किनारे बसे सुदूर गांवों में अनवरत श्रीमद्भागवत कथा को माध्यम मात्र बनाकर, जो उपदेश करते हैं, वो अद्भुत एवं अद्वितीय है ।।।।
प् स्मरणीय, परमाराध्य जगदाचार्य अनंत श्री विभूषित परिव्राजकाचार्य श्री त्रिदण्डी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य गुरूदेव श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी का जीवन-चरित्र, श्रीमद्भागवत वाटिका का वह ब्रह्म पुष्प है, जहां उनके दर्शन मात्र से ही श्रीमद्भागवत लाभ का प्रत्यक्ष अहसास होने लगता है। इनसे जुड़ी अनेका-अनेक अलौकिक कथा, माँ गंगा के आसपास साक्षी बने लाखों-लाख लोगों की जुवान पर हिलकोरे ले रही है।।।।
Contact to Balaji Ved Vidyalaya. to organize Shreemad Bhagwat Katha, Free Bhagwat Katha, Satsang, Vedic Karmkand, Srimad bhagwad geeta Pravachan's, Doubt Solution Mahasabha, Sri Ram Katha's Lakshminarayan Mahayagya, Chandi Mahayagya Rudra mahayagya & Rudra + Chandi Mahayagya in your area. you can also book online.
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स्वामी जी से सानिध्य के लिए श्रध्दालू 'श्रीत्रिदंडी स्वामी समाधि स्थल, चरित्रवन, बक्सर (बिहार) से सम्पर्क कर पता लगाते हैं, कि वे गंगा किनारे कहां किस गांव में कथा अमृत बांट रहे हैं। ऐसे परम संत को शत-शत वंदन।।।।
।।। नमों नारायण ।।।
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जय श्रीमन्नारायण,
ईश्वर, प्रकृ्ति और जीवन का जो ज्ञान है---वो हैं वैदिक ज्ञान. सृ्ष्टि के प्रारम्भ में मानव की भलाई तथा उसके ज्ञान के लिए अग्नि, वायु, अंगिरा तथा आदित्य ऋषियों द्वारा क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का ज्ञान प्रकाशित किया गया ।।।
भारत के प्राचीन ऋषियों नें आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा ईश्वर, प्रकृ्ति और आत्मा का अध्ययन किया, उनकी खोज की. अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा लोक-लोकान्तरों का पता लगाया. मृ्त्यु के बाद पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्रतिपादित किया. इतना ही नहीं परमात्मा और आत्मा के सम्बंध और रूप की खोज की. परमात्मा अनन्त है, उसकी सृ्ष्टि अनन्त है. इस सृ्ष्टि का पार न तो वैज्ञानिक ही पा सके और न ऋषि या योगिजन ही ।।।
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परमात्मा द्वारा इस सृ्ष्टि या कालचक्र की रचना के पीछे उसका कौन सा मंतव्य सिद्ध होता है, ये हम ये भी नहीं जानते । योगी योग के द्वारा और वैज्ञानिक खोज के जरिए आत्मा, परमात्मा और प्रकृ्ति का युगों से अन्वेषण होते आ रहा हैं, और दोनों का मूलभूत उदेश्य भी एक ही हैं, परन्तु मार्ग भिन्न भिन्न ।।।।
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अर्थात,' जो मेरी भक्ति से विमुख है, यज्ञ, दान, तप और वेदाध्ययन करके भी वे मुझे नहीं देख सकते।' यह घोषणा किसी अन्य की नहीं, अपितु स्वयं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने की है। भक्त और भगवान की चरम स्थिति 'एकाकार' है।।।।
अर्थ यह कि भक्ति जब अपने चरम को स्पर्श करने लगती है तब भक्त और भगवान एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं.... एकाकार हो जाते हैं। ऐसे में शिव कौन है और साधक या सधिका कौन में अंतर ही कहां रह जाता है। रामानुजाचार्य, शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य तथा माधवाचार्य आदि ऐसे सैकड़ों नाम हैं, जो भक्ति के मिसाल बनकर पृथ्वी पर युगों-युगों तक भक्ति की भावधारा को गति दे रहे हैं।।।
आधुनिक भारत में भी ऐसे कल्याणकारी संतों एवं सिध्दों की कभी कमी नहीं रही है। भक्ति और तप की इस मंगलकारी व परम कल्याणकारी एक नाम है - परिव्राजक श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी।।।
प्रभु श्री नारायण जो की श्री लक्ष्मी देवी एवं ब्रह्मादिक देवों को भी माया के जरिये नचाने वाले हैं । जिनकी कथा समय-समय से सनकादि नारद आदि प्रवृति के ऋषियों ने कहकर भक्तजनों को कृत्य-कृत्य करते हुए स्वयं को भी कृतार्थ किया।।।।
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प् स्मरणीय, परमाराध्य जगदाचार्य अनंत श्री विभूषित परिव्राजकाचार्य श्री त्रिदण्डी स्वामी जी महाराज के परम शिष्य गुरूदेव श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी का जीवन-चरित्र, श्रीमद्भागवत वाटिका का वह ब्रह्म पुष्प है, जहां उनके दर्शन मात्र से ही श्रीमद्भागवत लाभ का प्रत्यक्ष अहसास होने लगता है। इनसे जुड़ी अनेका-अनेक अलौकिक कथा, माँ गंगा के आसपास साक्षी बने लाखों-लाख लोगों की जुवान पर हिलकोरे ले रही है।।।।
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।।। नमों नारायण ।।।
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