मनुष्य का मन. The human mind. - स्वामी जी महाराज.

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मनुष्य का मन. The human mind.

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जय श्रीमन्नारायण,

हमारे मन का एक बहुत बड़ा गुण है, कि जो हमारे पास होता है, ये मन उसकी फिक्र कभी नहीं करता ! और जो हमारे पास नहीं होता है, हमेशा हमारा मन उसीकी आकांक्षा से भरा रहता है। मछली जीवन भर जल में रहती है, लेकिन उसे पानी का मूल्य तब तक पता नहीं लगता, जब तक कि उसे पानी से बाहर निकाल नहीं दिया जाता है ।।

मछली को जैसे ही पानी से बाहर किया जाता है, तड़पने लगती है । तब उसे पता लगता है, कि जल ही उसका जीवन है। ठीक उसी तरह हमारा भी, जब तक उम्र का अन्तिम पड़ाव न आ जाये, तब तक हमें भी ये एहसास नहीं होता, कि हमारे पास कितना बहुमूल्य जीवन था ।।।


हम नाच सकते थे, दूसरों के दुःखों को बाँट सकते थे, हम हंसकर जीवन बीता सकते थे । हम सेवा का आनन्द ले सकते थे । पर हमने पूरा जीवन भविष्य की चिन्ता में ही बिताया और जिस अपेक्षा को लेकर भविष्य की चिन्ता की, वह पूरी भी नहीं हुई ।।।
यह मन का ही खेल है, कि मन जिस भविष्य को संजोता है, उसे पूरी भी वही नहीं करने देता । क्योंकि मन ने भविष्य को संजोने की केवल आदत जो बना ली है। उसने वर्तमान मे रहकर कर्म करने का प्रशिषण ही नहीं लिया । उसने प्रशिषण लिया है, तो सिर्फ भविष्य की कामना करने का और ये कामनायें हर पग–पग पर दुःख, क्रोध, ईर्या, द्वेष ही देती हैं ।।।

यह मन की जन्मजात आदत है। मन को दूरदर्शी बनाने के लिए उसे वर्तमान में रहकर गहन प्रशिषण की आवश्यकता होती है । मात्र यह समझ लेने से कि हम वर्तमान में रह रहे हैं’’ से काम नहीं चलता। बल्कि वर्तमान मे जीने के लिए, इस मन को प्रतिदिन भगवद्कर्मों (भगवान कि सेवा) और अपने कर्तब्यनिष्ठता तथा अपने कार्यो् के प्रति पूर्ण समर्पणता के साथ ही वर्तमान में रखा जा सकता है ।।।


कर्मो के प्रति निष्ठा मन को वर्तमान में रहना सिखाती है। और अपने कर्म के प्रति निष्ठावान बनने के लिए जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा । क्योंकि लक्ष्यविहिन जीवन, मन को भविष्य के सपने संजोने का आमन्त्रण देता है। तथा लक्ष्ययुक्त जीवन मन को सिर्फ और सिर्फ वर्तमान में रहना सिखलाता है ।।।
संसार में कोई व्यक्ति आपके बच्चे को स्नेहवश टॉफी या अन्य उपहार देता है, तो आप झट से अपने बच्चे को यह कहते हैं, कि अंकल को थैंक्यू बोलो । यह संसार का छोटा-सा सदाचार है ।

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फिर हमें भगवान को धन्यवाद कहने में झिझक क्यों होती है, जिसने हमें जन्म दिया, तथा जो हमारा पालनकर्ता है।।।

।।। नमों नारायण ।।।

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