जय श्रीमन्नारायण,
न यद्वचश्चित्रपदं हरेर्यशो जगत्पवित्रं प्रगृणीत कर्हिचित् ।।
तद्वायसं तीर्थमुशन्ति मानसा न यत्र हंसा निरमन्त्युशिक्क्षयाः ।। 10 ।।(भा.पू.स्क.१.अ.५.)
जिस वाणी से- चाहे वह रस-भाव-अलंकारादि से युक्त ही क्यों न हो- जगत को पवित्र करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण के यश का कभी गान नहीं होता । वह तो कौओं के लिए उच्छिष्ट फेंकने के स्थान के समान अपवित्र मानी जाती है ।।।
मानसरोवर के कमनीय कमलवन में विहरनेवाले हंसों की भांति ब्रह्मधाम में विहार करनेवाले भगवच्चरणारविन्दाश्रित परमहंस भक्त कभी उसमें रमण नही करते (अर्थात उस वाणी को सुनकर कभी आनंदित नहीं होते) ।। 10 ।।
।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
न यद्वचश्चित्रपदं हरेर्यशो जगत्पवित्रं प्रगृणीत कर्हिचित् ।।
तद्वायसं तीर्थमुशन्ति मानसा न यत्र हंसा निरमन्त्युशिक्क्षयाः ।। 10 ।।(भा.पू.स्क.१.अ.५.)
जिस वाणी से- चाहे वह रस-भाव-अलंकारादि से युक्त ही क्यों न हो- जगत को पवित्र करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण के यश का कभी गान नहीं होता । वह तो कौओं के लिए उच्छिष्ट फेंकने के स्थान के समान अपवित्र मानी जाती है ।।।
मानसरोवर के कमनीय कमलवन में विहरनेवाले हंसों की भांति ब्रह्मधाम में विहार करनेवाले भगवच्चरणारविन्दाश्रित परमहंस भक्त कभी उसमें रमण नही करते (अर्थात उस वाणी को सुनकर कभी आनंदित नहीं होते) ।। 10 ।।
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।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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