जय श्रीमन्नारायण,
Swami Dhananjay Maharaj
श्रीमद्भागवत जी में वर्णित, राजा परीक्षित तथा वृषभ रूप धारी धर्म का जो संवाद है, वो पूर्णतः वेदान्त के शब्द हैं ! और मैं तो कहता हूँ, कि जिन्हें आत्मा परमात्मा का ज्ञान नहीं है, सिर्फ शब्दों को सुनकर ही, उसके पीछे भागते हैं, उन्हें ये प्रसंग अवश्य पढना चाहिए !!!
Sevashram Sansthan, Silvassa. & Swami Dhananjay Maharaj
धर्म से परीक्षित ने पूछा - हे देव ! आपके तीन पैर किसने और क्यों काट डाले ?
न वयं क्लेशबीजानि यतः स्युः पुरुषर्षभ !!
पुरुषं तं विजानीमो वाक्यभेदविमोहिताः !! 18 !!
Sevashram Sansthan, Silvassa. & Swami Dhananjay Maharaj
धर्म ने कहा - नरेन्द्र ! मैं अपने इस दुःख का कारण स्वयं नहीं जानता, क्योंकि शास्त्रों के विभिन्न वचनों से मोहित होने के कारण मैं किसका नाम लूँ, कि किसने मेरे पैर काट डाले ।।18।।
अगले श्लोक में धर्म रूपी बैल कहते हैं:- क्योंकि -
जो लोग किसी भी प्रकार के द्वैत को स्वीकार नहीं करते, वे अपन-आपको ही अपने दुःख का कारण बतलाते हैं। कोई प्रारब्ध को कारण बतलाते हैं, तो कोई कर्म को। कुछ लोग स्वभाव को, तो कुछ लोग ईश्वर को दुःख का कारण मानते हैं ।।19।।
Sevashram Sansthan, Silvassa. & Swami Dhananjay Maharaj.
और कहते हैं, कि - किन्हीं-किन्हीं का ऐसा भी निश्चय है, कि दुःख का कारण न तो तर्क के द्वारा जाना जा सकता है और न वाणी के द्वारा बतलाया जा सकता है। राजर्षे ! अब इनमें से कौन-सा मत ठीक है, यह आप अपनी बुद्धि से स्वयं ही विचार लीजिये ।।20।।
सूतजी कहते हैं- ऋषिश्रेष्ठ शौनकजी ! धर्म का यह प्रवचन सुनकर सम्राट परीक्षित बहुत प्रसन्न हुए, उनका खेद मिट गया। और वो शान्तचित्त हो गए, क्योंकि सम्पूर्ण रहस्य उनकी समझ में आ गया था !!
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श्रीमद्भागवत जी में वर्णित, राजा परीक्षित तथा वृषभ रूप धारी धर्म का जो संवाद है, वो पूर्णतः वेदान्त के शब्द हैं ! और मैं तो कहता हूँ, कि जिन्हें आत्मा परमात्मा का ज्ञान नहीं है, सिर्फ शब्दों को सुनकर ही, उसके पीछे भागते हैं, उन्हें ये प्रसंग अवश्य पढना चाहिए !!!
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धर्म से परीक्षित ने पूछा - हे देव ! आपके तीन पैर किसने और क्यों काट डाले ?
न वयं क्लेशबीजानि यतः स्युः पुरुषर्षभ !!
पुरुषं तं विजानीमो वाक्यभेदविमोहिताः !! 18 !!
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धर्म ने कहा - नरेन्द्र ! मैं अपने इस दुःख का कारण स्वयं नहीं जानता, क्योंकि शास्त्रों के विभिन्न वचनों से मोहित होने के कारण मैं किसका नाम लूँ, कि किसने मेरे पैर काट डाले ।।18।।
अगले श्लोक में धर्म रूपी बैल कहते हैं:- क्योंकि -
जो लोग किसी भी प्रकार के द्वैत को स्वीकार नहीं करते, वे अपन-आपको ही अपने दुःख का कारण बतलाते हैं। कोई प्रारब्ध को कारण बतलाते हैं, तो कोई कर्म को। कुछ लोग स्वभाव को, तो कुछ लोग ईश्वर को दुःख का कारण मानते हैं ।।19।।
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और कहते हैं, कि - किन्हीं-किन्हीं का ऐसा भी निश्चय है, कि दुःख का कारण न तो तर्क के द्वारा जाना जा सकता है और न वाणी के द्वारा बतलाया जा सकता है। राजर्षे ! अब इनमें से कौन-सा मत ठीक है, यह आप अपनी बुद्धि से स्वयं ही विचार लीजिये ।।20।।
सूतजी कहते हैं- ऋषिश्रेष्ठ शौनकजी ! धर्म का यह प्रवचन सुनकर सम्राट परीक्षित बहुत प्रसन्न हुए, उनका खेद मिट गया। और वो शान्तचित्त हो गए, क्योंकि सम्पूर्ण रहस्य उनकी समझ में आ गया था !!
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http://dhananjaymaharaj.blogspot.in/
https://twitter.com/swamiji21
!!!! नारायण सभी का कल्याण करें, विश्व का कल्याण हो !!!!
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