कानून, भ्रष्टाचार और वैदिक सिद्धान्त ।। Law, corruption and Vedic principles.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, हम 26 जनवरी क्यों मनाते हैं ? क्योंकि ये हमारे द्वारा निर्मित एक नियम, एक संविधान का दिन है, जिस संविधान के पालन करने से हमारा पूरा मानव समाज एवं सम्पूर्ण भारत सुखी एवं समृद्ध होगा । जिसे कानून कहा जाता है और जो केवल समाज के हित के लिए निर्मित किया गया है ।। कानून, ये एक ऐसी व्यवस्था है, जो समाज कैसे सुरक्षित रहे, इस बात का ध्यान रखकर बनाया गया नियम है । लेकिन इसमें पक्षपात या कमियां हो सकती है । परन्तु जो वेद कहते हैं, वो क्या है ? इसे हम जानने की आवश्यकता ही नहीं समझते । जबकि अगर हम एक बार जान जायें तो हमारा जीवन ही बिलकुल ही बदल जाय ।।
मित्रों, अगर आपने वेदों के बारे में कुछ भी जाना हो तो बतायें कि वैदिक सिद्धान्तों में और आज के कानून फिर चाहे वो किसी भी देश का कानून क्यों न हो, क्या अन्तर है ? मैं बताता हूँ, नियमों में तो कोई अन्तर नहीं है परन्तु बनाने और पालने-पालनेवालों और इसे मनवाने के तौर-तरीकों में कुछ भिन्नता अवश्य है ।। आप ध्यान से देखेंगे तो कभी-कभी देखने में आता है, कि कुछ लोग जो इस कानून के रक्षक हैं, वही लोग इस कानुन की धज्जियाँ उड़ाते हैं । जबकि वेदों को बनाने वाला वेदों का नियम अपने सर माथे पर रखकर चलता और चलना सिखाता है । जैसे वेदपुरुष राम से लेकर अबतक के सन्त-महापुरुष तक ।।
मित्रों, विचार करें, कितना अंतर है वैदिक मार्ग में और इंसानी मार्ग में ? प्रकृति से सम्बंधित जो नियम हैं, हम कितनी सहजता से फटे मुंह कह देते हैं, कि हम उसे नहीं मानते । साथ ही दूसरी ओर जो पूर्णतः पाखंड है, उसे हम मानने को दुनियां को कहते हैं । आप कहें की हम वैदिक सिद्धांतों को नहीं मानते, और कुछ दुसरे लोग कहें, की हम आपके कानून को नहीं मानते ।। आप जब सोचेंगे तो ये दोनों बातें लगभग एक सी है । लेकिन एक जो बड़ा अंतर है, वो ये है, कि कानून को बनाने अथवा जो आज के रक्षक हैं, वो सिर्फ दूसरों से आशा रखते हैं, की उसके अलावे सभी दुसरे लोग ही इस कानून का पालन करें । जबकि वैदिक सिद्धांतों में किसी के लिए भी इस प्रकार की कोई छुट नहीं है ।।
मित्रों, इस विषय को आइये और गहराई से जानने का प्रयास करें - कानून कहता है, की किसी की हत्या करोगे, तो 302 धारा लगेगी और जेल में जाकर यातना सहनी पड़ेगी, बल्कि फांसी भी हो सकती है । वेद कहते हैं, की ''मा हिंसी:'' किसी की हत्या मत करो । ये अन्याय है, पाप है, और इसकी सजा नर्क है, जिससे तुम्हें कोई भी नहीं बचा सकता ।। कानून कहता है, की अन्याय और अनीति पूर्वक किसी का धन हड़पना धारा 420 का केश बनता है, और इसके बदले जेल होगी । वेद कहते हैं, की '''मा गृधः कस्य स्विद्धनं''' किसी का धन किसी भी तरह का धन अन्याय और अनीति पूर्वक या मुर्ख बनाकर हड़पना-छिनना अथवा धोखे से छलपूर्वक लेना महापाप है, और नरक में भी ऐसे पापियों के लिए कोई स्थान नहीं है अर्थात नरक से भी ज्यादा कठिन यातना का वो अधिकारी है ।।
मित्रों, आप अदालतों में खड़ा कराकर, गीता का कसम देकर किसी से सत्य नहीं बुलवा सकते । उसके लिए अंतरात्मा में सत्य के लिए स्थान होना चाहिए । एक तरफ तो सबकुछ करके बच निकलने का पाठ पढ़ाया जाता है और दूसरी तरफ उम्मीद किया जाता है, कि लोग सत्य बोलें फिर चाहे गीता की कसम ही लेकर क्यों न हो तो ये तो सम्भव नहीं है ।। लोगों से सत्य बुलवाने के लिए ''''सत्यं बद''' जैसे वैदिक ज्ञान, जो बचपन से ही अन्दर जाय, इसकी आवश्यकता होती है । जरूरत है, वैदिक ज्ञान को बढ़ावा देने की, आवश्यकता है, सन्मार्ग सिखाने वाले पाठों को पढने और पढ़ाने की । इसमें कहीं कोई पाखंड नहीं, कही कोई अन्याय नहीं, इसमें केवल और केवल विश्व के सम्पूर्ण प्राणियों का कल्याण कैसे हो, सभी जीव मात्र तक सुखी कैसे रहें यही सोंच समाहित है ?
मित्रों, इस तरह के सभी सूत्र, सभी ज्ञान इतना ही नहीं अपितु आज के भौतिक कानून जहाँ तक सोंच नहीं सकता । ऐसे ज्ञान भरे पड़े हैं हमारे वैदिक ग्रन्थों में । जरूरत है, केवल इसे समझने और समाज के भटके लोगों को समझाने की । जरूरत है, हमें ऐसे लोगों को सम्मान देने और उन्हें सम्मान का अधिकारी बनाने की ।। आज इस ज्ञान का लोप हो रहा है, क्योंकि जो लोग पहले से अथवा परंपरागत रूप से जमें हुए हैं । वो इस भाव को समझने और समझाने में असमर्थ हैं । तो वहीँ दूसरी तरफ जिनके पास पैसा है वो इसे समझने और समाज के भटके लोगों को सत्संग प्रवचन के माध्यम से समझाया जाय ऐसी व्यवस्था भी करवाना आवश्यक नहीं समझते ।।
मित्रों, लोग करोड़ों अरबों खर्च करके एक अच्छा गायक ढूंढते हैं, रियलिटी शो करवा लेते हैं । इसका अर्थ क्या है ? क्या हमारे यहाँ ऐसा कोई नहीं, जो ऐसा कोई आयोजन करवाए, जिसके जरिये कोई समाज का उद्धारक निकल कर समाज के सामने आये, और समाजहित का कार्य करे, समाज को नई दिशा दे ।। मैं कहना ये चाहता हूँ, कि बड़े से बड़े धार्मिक आयोजनों अथवा परंपरागत (कथा-प्रवचनों) व्यवस्थाओं से अलग निकलकर कुछ अलग जैसे शास्त्रार्थ सभाओं का आयोजन किया जाय जहाँ से कुछ नया सोंच, कुछ नई तकनीक सामने आये । देश ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण मानव जाती के लिए कल्याण की भावना रखने वाला, सच्चा भक्त ही कोई ऐसा कर सकता है ।।
कोई भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की बातें सुनकर ही धर्म करने वाला या अपने को मान लेने वाला, धार्मिक नहीं होता और ना ही वो ऐसा कभी कुछ कर सकता है । आज हमारे देश में नर्तक और नर्तकियों को भारत रत्न जैसे अवार्ड दिए जाते हैं । और शांतिदूत जिन्होंने कुत्सित भावना को बढ़ावा देने वालों को भी सन्मार्ग दिखाया, समाज में शांति लाने हेतु, अपने सभी सुखों का परित्याग किया, उन्हें आतंकवादी जैसे नाम इनाम में दिए जाते हैं ।। दुर्भाग्य है इस देश का, जिस देश के सन्तों ने विश्व में अपना एक स्थान बनाया । जिस देश के सन्तों ने विश्व में शांति कायम करने का पूर्ण प्रयत्न किया, उनके अपने ही देश के राजनेताओं के मुख से ऐसे शब्द । ये देश को अवनति की ओर ले जाने के मार्ग को प्रशस्त करता है और पतन के दरवाजे को खोलता है ।।
जहाँ नंगे नाचने वालों को इनाम मिले, वहां कौन नहीं चाहेगा, की सम्प्पूर्ण सुखोपभोग के बाद भी, इनाम मिलता हो, वही कार्य हम भी करें । हमारे देश में आज सिनेमा जगत के लोग आदर्श बने बैठे हैं । अच्छी बात है, परन्तु इनकी मानसिकता विकृत है । अगर इनकी मानसिकता अगर विकृत न होती तो ये लोग जिन्हें एक सिनेमा में करोड़ों-अरबों कि कमाई होती है, उसमे से दो-चार-दस लाख धर्म पर क्यों नहीं खर्च करते ।।
हमारे वेदों में जो विज्ञान है, उसे उजागर करने के लिए कोई प्रयोगशाला बने, वेदों की सुरक्षा हो, वैदिक ज्ञान को इनाम मिले । ऐसा कोई कार्य होना चाहिये कि सभी लोग वैदिक ज्ञान पाने को उत्सुक हो जाय । धन कि कोई कमी है नहीं हमारे देश में इसके बाद भी अगर कोई इस प्रकार के उत्तम कार्य न करे, तो उसकी मानसिकता को क्या कहा जाना चाहिए ?
हम गणतंत्र तभी हो सकते हैं, जब समाज से भ्रष्टाचार मिट जाय । और इसके लिये चाहे कोई भी कानून बने इसे दूर नहीं किया जा सकता । इसके लिये जरूरत है, वैदिक धर्म को प्रचारित किया जाय । लोगों तक वैदिक धर्म या वेदों के सत्य ज्ञान को पहुँचाया जाय । और धर्म में जो विकृति है, इसके लिए परम्परागत धार्मिक व्यवस्थाओं के साथ शास्त्रार्थ महासभाओं का आयोजन किया जाय । ताकि नए विचारों को समाज में स्थान मिले ।।
अन्यथा हमारी भावनाओं से खेलने वाले लोग, धर्म का मुखौटा पहनकर आयेंगें और समाज को लुटकर चले जायेंगें । अभी कुछ दिनों पहले एक आया और मन्त्र चले ना तंत्र कहकर समाज को खरबों-खरबों का चुना लगा गया । हमारे धनपतियों को जागना होगा, धर्म को बढाने के लिए ।।
गरीबों के उत्थान के लिए सरकार कार्य कर रही है । विकलांगों को सुखी बनाया जाय, इसके लिए सरकार में बैठे लोग जिम्मेवार हैं । लेकिन धर्म को जन जन तक पहुंचाकर उनमें धार्मिक चेतना जगाई जाय और उन्हें सन्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया जाय, इसके लिए हमें जागना होगा इसके लिए दान करना होगा, इसके लिए, वैदिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा । तभी समाज से भ्रष्टाचार को मिटाया जा सकेगा और तभी हम गणतंत्र हो पायेंगें ।।
।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें ।।
।। सभी जीवों की रक्षा करें ।।
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
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