जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, केवल धर्म को पाखंड के नाम पर त्याग कर देना उचित नहीं है । धर्म के प्रत्यंग में कुछ-न-कुछ गंभीर रहस्य छिपा होता है । आप अपने सभी कर्मों में भगवान को सहारा बनाकर कर्म करें तो सफलता आपके सभी लक्ष्य में मिलेगी इसमें कोई संसय नहीं है ।।
यत्करोषि यादश्नाशी यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपश्यसी कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ।।
महाभारत के युद्ध के मैदान की बात है, दुष्ट जयद्रथ के वजह से वीर अभिमन्यु को दुष्ट कौरवों ने घेर कर मार डाला था । अर्जुन भी कुपित थे और क्रोधावस्था में ही प्रतिज्ञा ले ली की कल का सूर्यास्त जयद्रथ नहीं देख पायेगा । अगर देख लिया तो मैं अग्नि समाधी ले लूँगा ।।
अगले दिन युद्ध में बहुत हलचल हुआ लेकिन जयद्रथ की रक्षा में कौरवों ने अपने प्राण लगा दिये और अर्जुन जयद्रथ को नहीं मार पाये । भगवान ने माया से सूर्य को छिपा दिया और जयद्रथ सामने आकर ललकारने लगा ।।
जयद्रथ सामने खड़ा हो गया और अर्जुन को खरी-खोटी सुनाने । गाण्डीवधारी अर्जुन ! दिव्य अस्त्रों के ज्ञाता अर्जुन ! प्रतिज्ञा पूरी करो, जल्दी अग्नि समाधी लो । इस ग्वाले के माथे उछल रहे थे अब मरो ? परन्तु भगवान की लीला को कौन समझ सकता है ? लीलाधारी जो हैं ।।
भगवान ने मौके को देखा और अर्जुन को इशारा करते हुए बोले अर्जुन निराश क्यों होते हो ? अपने सामने देखो बिल्कुल ठीक निशाने परतुम्हारा लक्ष्य जयद्रथ है और सूर्य भी आकाश में खिलखिला रहा है । एक पल को तो सभी अचम्भित से रह गये और आकाश की ओर देखने लगे ।।
भगवान ने कहा - अर्जुन सावधान ! इसका सर नीचे नहीं गिरने पाये । क्योंकि इस जयद्रथ के पिता बृहद्रथ ने उसे वरदान दिया है, कि जो भी इसका सर धरती पर गिराएगा उसका सर भी फट जायेगा और उसकी भी मृत्यु हो जाएगी ।। दिव्य अस्त्रों का ज्ञाता अर्जुन ! उसने अपने बाण से आकाश में रोक कर रखा उसके सर को । दूर समाधी में बैठे उसके पिता की गोद में ही डाल दिया उसके सर को । जबतक वो समझ पाते की ये है क्या ? उठाकर खड़े हो गये ! और जयद्रथ का सिर धरती पर गिर पड़ा ।।
जैसे ही उसका सिर धरती पर गिरा उसके पिता के सिर में भी तुरंत एक विस्फोट हुआ । उसके पिता की भी मृत्यु हो गयी और जयद्रथ भी मर गया । जैसे ही जमीन पर सिर को पटके उसके सिर के भी सहस्रों टुकड़े हो गये ।।
ये इतना बड़ा और ऐसा कवच था कि क्या मनुष्य तोड़ सकता था ? अगर युद्ध के मैदान में क्रोध में अर्जुन सीधा दौड़ जयद्रथ को मार भी देता तो क्या परिणाम निकलता ? ऐसी स्थिति में अर्जुन को खुद तो मरना ही था और जयद्रथ के सहारे कौरवों की जीत निश्चित हो जाती ।।
मित्रों, भगवान भी वही चाल चलते हैं जिससे मनुष्य सही लक्ष्य पर खरा उतरे । इसलिए हमें सदैव प्रेरक के रूप में भगवान को सम्मुख खड़े करके ही कोई भी कार्य करना चाहिये । हमारा विश्वास और हमारी श्रद्धा ही भगवान में स्थिर नहीं हो पाती जिससे भटकाव जीवन में बना ही रहता है ।। ।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
मित्रों, केवल धर्म को पाखंड के नाम पर त्याग कर देना उचित नहीं है । धर्म के प्रत्यंग में कुछ-न-कुछ गंभीर रहस्य छिपा होता है । आप अपने सभी कर्मों में भगवान को सहारा बनाकर कर्म करें तो सफलता आपके सभी लक्ष्य में मिलेगी इसमें कोई संसय नहीं है ।।
यत्करोषि यादश्नाशी यज्जुहोषि ददासि यत् ।
यत्तपश्यसी कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ।।
महाभारत के युद्ध के मैदान की बात है, दुष्ट जयद्रथ के वजह से वीर अभिमन्यु को दुष्ट कौरवों ने घेर कर मार डाला था । अर्जुन भी कुपित थे और क्रोधावस्था में ही प्रतिज्ञा ले ली की कल का सूर्यास्त जयद्रथ नहीं देख पायेगा । अगर देख लिया तो मैं अग्नि समाधी ले लूँगा ।।
अगले दिन युद्ध में बहुत हलचल हुआ लेकिन जयद्रथ की रक्षा में कौरवों ने अपने प्राण लगा दिये और अर्जुन जयद्रथ को नहीं मार पाये । भगवान ने माया से सूर्य को छिपा दिया और जयद्रथ सामने आकर ललकारने लगा ।।
जयद्रथ सामने खड़ा हो गया और अर्जुन को खरी-खोटी सुनाने । गाण्डीवधारी अर्जुन ! दिव्य अस्त्रों के ज्ञाता अर्जुन ! प्रतिज्ञा पूरी करो, जल्दी अग्नि समाधी लो । इस ग्वाले के माथे उछल रहे थे अब मरो ? परन्तु भगवान की लीला को कौन समझ सकता है ? लीलाधारी जो हैं ।।
भगवान ने मौके को देखा और अर्जुन को इशारा करते हुए बोले अर्जुन निराश क्यों होते हो ? अपने सामने देखो बिल्कुल ठीक निशाने परतुम्हारा लक्ष्य जयद्रथ है और सूर्य भी आकाश में खिलखिला रहा है । एक पल को तो सभी अचम्भित से रह गये और आकाश की ओर देखने लगे ।।
भगवान ने कहा - अर्जुन सावधान ! इसका सर नीचे नहीं गिरने पाये । क्योंकि इस जयद्रथ के पिता बृहद्रथ ने उसे वरदान दिया है, कि जो भी इसका सर धरती पर गिराएगा उसका सर भी फट जायेगा और उसकी भी मृत्यु हो जाएगी ।। दिव्य अस्त्रों का ज्ञाता अर्जुन ! उसने अपने बाण से आकाश में रोक कर रखा उसके सर को । दूर समाधी में बैठे उसके पिता की गोद में ही डाल दिया उसके सर को । जबतक वो समझ पाते की ये है क्या ? उठाकर खड़े हो गये ! और जयद्रथ का सिर धरती पर गिर पड़ा ।।
जैसे ही उसका सिर धरती पर गिरा उसके पिता के सिर में भी तुरंत एक विस्फोट हुआ । उसके पिता की भी मृत्यु हो गयी और जयद्रथ भी मर गया । जैसे ही जमीन पर सिर को पटके उसके सिर के भी सहस्रों टुकड़े हो गये ।।
ये इतना बड़ा और ऐसा कवच था कि क्या मनुष्य तोड़ सकता था ? अगर युद्ध के मैदान में क्रोध में अर्जुन सीधा दौड़ जयद्रथ को मार भी देता तो क्या परिणाम निकलता ? ऐसी स्थिति में अर्जुन को खुद तो मरना ही था और जयद्रथ के सहारे कौरवों की जीत निश्चित हो जाती ।।
मित्रों, भगवान भी वही चाल चलते हैं जिससे मनुष्य सही लक्ष्य पर खरा उतरे । इसलिए हमें सदैव प्रेरक के रूप में भगवान को सम्मुख खड़े करके ही कोई भी कार्य करना चाहिये । हमारा विश्वास और हमारी श्रद्धा ही भगवान में स्थिर नहीं हो पाती जिससे भटकाव जीवन में बना ही रहता है ।। ।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
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