जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, मनुष्य एक बहुत ही विलक्षण प्राणी होता है । एक होती है कामना जो जीवमात्र में होती है अर्थात लगभग सभी जीवों में । जैसे खाने की, पीने की, भोगने की संग्रह करने की ।।
उदहारण के लिए अगर किसी कुत्ते का जब पेट भर जाये तो वो भी कोई बढ़िया चीज मिलने पर उसे उठाकर ले जाता है । और गड्ढा खोदकर गाड़ देता है कि कल खायेंगे ।।
मित्रों, इसी को कामना कहते हैं जैसे इंसानों का स्वाभाव है कि पैसे अभी हैं पर थोड़े बैंक में भी होने चाहिए । जरुरत पड़ने पर काम आयेंगे इसी को कामना, स्वार्थ या लालच कहते हैं ।।
सच कहें तो पेड़-पौधों के मन में भी कामनायें होती है । मनुष्य की कामना और होती है, कुत्तों की कामना और होती है इसी प्रकार कामना सभी जीवों में होती है ।।
मित्रों, परन्तु मनुष्य में दो चीजें ऐसी होती हैं जो और जीवों में नहीं होतीं । मनुष्य में कामना के साथ लालसा भी होती है और जिज्ञासा भी होती है और यह बहुत ऊँची चीज है ।।
अगर हम मनुष्य अपनी बाकि बातों को भगवान पर छोड़ दे तो देखते-देखते महान आत्मा एवं दिव्यात्मा बन जायेंगे । इसीलिए कहा जाता है, कि मनुष्य-जीवन देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ।।
देवताओं में भी लालसा और जिज्ञासा होती है परंतु स्वर्ग में इतनी सुविधा-इतना सुख-वैभव होता है कि वे उसी में मशगूल हो जाते हैं । भक्ति जैसी बातों का फायदा उठाने से रह ही जाते हैं ।।
उनका भी जब पुण्य नष्ट हो जाता है तो फिर मनुष्य शरीर में आते हैं । परंतु मनुष्य-जन्म में ये चीजें ज्यों-की-त्यों बरकरार रहती हैं । लालसा भगवान के दर्शन की और जिज्ञासा भगवान से मिलन की ।।
किसी मनुष्य के पास कितना भी धन हो जाये फिर भी अन्दर से व्यक्ति कुछ ढूंढते रहता हैं । अमीर-से-अमीर व्यक्ति भी पता नहीं किसकी तरफ भगता है अथवा कुछ-न-कुछ कमी महशुश करता है ।।
मित्रों, चाहे वो कोई भी हो भगवान की तरफ जाता हैं अथवा किसी-न-किसी को मानता ही है । लगभग सभी लोग भगवान को मानते हैं और जो नहीं मानते समझो उनकी मनुष्यता ही खो गयी ।।
मनुष्य में यह लालसा रहती है कि भगवत्सुख मिले, भगवत्प्रीति मिले, भगवद्दरश मिले तथा अन्त में भगवदधाम मिले । हम लोग स्वर्ग, बिहिश्त, पैराडाइज अथवा कुछ भी बोल लें परन्तु भगवत्मिलन की कामना रहती ही है ।।
मित्रों, ये जिसके अन्दर नहीं है निश्चित रूप से उसकी मनुष्यता या तो आर्थिकता और भौतिकता में खो गयी है या फिर मर चुकी है । उसे जगाने की व्यवस्था फिर ये प्रकृति स्वयं कर लेती है ।।
।। नारायण सभी का कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
उदहारण के लिए अगर किसी कुत्ते का जब पेट भर जाये तो वो भी कोई बढ़िया चीज मिलने पर उसे उठाकर ले जाता है । और गड्ढा खोदकर गाड़ देता है कि कल खायेंगे ।।
मित्रों, इसी को कामना कहते हैं जैसे इंसानों का स्वाभाव है कि पैसे अभी हैं पर थोड़े बैंक में भी होने चाहिए । जरुरत पड़ने पर काम आयेंगे इसी को कामना, स्वार्थ या लालच कहते हैं ।।

मित्रों, परन्तु मनुष्य में दो चीजें ऐसी होती हैं जो और जीवों में नहीं होतीं । मनुष्य में कामना के साथ लालसा भी होती है और जिज्ञासा भी होती है और यह बहुत ऊँची चीज है ।।
अगर हम मनुष्य अपनी बाकि बातों को भगवान पर छोड़ दे तो देखते-देखते महान आत्मा एवं दिव्यात्मा बन जायेंगे । इसीलिए कहा जाता है, कि मनुष्य-जीवन देवताओं के लिए भी दुर्लभ है ।।



उनका भी जब पुण्य नष्ट हो जाता है तो फिर मनुष्य शरीर में आते हैं । परंतु मनुष्य-जन्म में ये चीजें ज्यों-की-त्यों बरकरार रहती हैं । लालसा भगवान के दर्शन की और जिज्ञासा भगवान से मिलन की ।।
किसी मनुष्य के पास कितना भी धन हो जाये फिर भी अन्दर से व्यक्ति कुछ ढूंढते रहता हैं । अमीर-से-अमीर व्यक्ति भी पता नहीं किसकी तरफ भगता है अथवा कुछ-न-कुछ कमी महशुश करता है ।।
मित्रों, चाहे वो कोई भी हो भगवान की तरफ जाता हैं अथवा किसी-न-किसी को मानता ही है । लगभग सभी लोग भगवान को मानते हैं और जो नहीं मानते समझो उनकी मनुष्यता ही खो गयी ।।

मित्रों, ये जिसके अन्दर नहीं है निश्चित रूप से उसकी मनुष्यता या तो आर्थिकता और भौतिकता में खो गयी है या फिर मर चुकी है । उसे जगाने की व्यवस्था फिर ये प्रकृति स्वयं कर लेती है ।।

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