जय श्रीमन्नारायण,
"प्रीतम प्रीति ही ते पैये" प्रभु रीति से नहीं प्रीति से ही प्राप्त होते हैं । मुक्ति तो भगवान् किसी भी भाव से भक्ति करने वाले को दे देते हैं ।।
परन्तु मित्रों, भक्ति किसी प्रेमी को ही देते हैं । परन्तु प्रेम के लक्षण क्या है ? भागवत में लिखा है - वाग्गद्गदा द्रवते यस्य चित्तं रुदत्यभिक्ष्णम् हसते क्वचिच्च । विल्लज्ज उद्गायति नृत्यते वा मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति ।।
अर्थात् = जब भगवान् के नाम, रूप, लीला का स्मरण होते ही आँखों से अश्रुपात तथा शरीर में रोमांच होने लगे, वाणी गदगद हो जाये, कंठ अवरुद्ध हो जाये तो उसे प्रेम की दशा समझनी चाहिए ।।
मित्रों, ऐसी दशा पर रीझकर ही भगवान् भक्तों को दर्शन देते हैं । ऐसा प्रेम जिसके बश में भगवान् भी हो जाते हैं वह प्रेम केवल दो ही मार्ग से प्राप्त होता है ।।
पहला सन्तों के संग से और दूसरा भगवत्कथा श्रवण अथवा सत्संग से । इसलिए मेरी समझ से जीवन सन्त महापुरुषों की सेवा तथा निरंतर सत्संग श्रवण इन दोनों का आश्रय लेना चाहिए ।।
।। राधे राधे श्याम मिला दे ।। जय जय श्री राधे ।।
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।। नमों नारायण ।।
मित्रों, प्रेम ही सबसे बड़ा धन है इसमें को संसय नहीं है । प्रेम ही पञ्चम पुरुषार्थ है और यही श्री कृष्ण के माधुर्य का आस्वादन करवाता है ।।
"प्रीतम प्रीति ही ते पैये" प्रभु रीति से नहीं प्रीति से ही प्राप्त होते हैं । मुक्ति तो भगवान् किसी भी भाव से भक्ति करने वाले को दे देते हैं ।।
परन्तु मित्रों, भक्ति किसी प्रेमी को ही देते हैं । परन्तु प्रेम के लक्षण क्या है ? भागवत में लिखा है - वाग्गद्गदा द्रवते यस्य चित्तं रुदत्यभिक्ष्णम् हसते क्वचिच्च । विल्लज्ज उद्गायति नृत्यते वा मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति ।।
अर्थात् = जब भगवान् के नाम, रूप, लीला का स्मरण होते ही आँखों से अश्रुपात तथा शरीर में रोमांच होने लगे, वाणी गदगद हो जाये, कंठ अवरुद्ध हो जाये तो उसे प्रेम की दशा समझनी चाहिए ।।
मित्रों, ऐसी दशा पर रीझकर ही भगवान् भक्तों को दर्शन देते हैं । ऐसा प्रेम जिसके बश में भगवान् भी हो जाते हैं वह प्रेम केवल दो ही मार्ग से प्राप्त होता है ।।
पहला सन्तों के संग से और दूसरा भगवत्कथा श्रवण अथवा सत्संग से । इसलिए मेरी समझ से जीवन सन्त महापुरुषों की सेवा तथा निरंतर सत्संग श्रवण इन दोनों का आश्रय लेना चाहिए ।।
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।। नमों नारायण ।।
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