जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, हमारी एवं सबकी प्यारी राधा रानी ने अपने महल में तोते पाल रखे थे । उन तोतों को वे हर रोज हरे कृष्ण हरे कृष्ण बारम्बार कह-कह कर सुनाती थी ।।
अब आप तोतों के स्वाभाव तो जानते ही हैं, वे तोते भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण बोलने लगे । इतना ही नहीं, राधा रानी की सभी सखियाँ भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण सदैव बोलती रहतीं थीं ।।
मित्रों, एक दिन राधा जी यमुना किनारे ऐसे ही विचर रहीं थीं एवं उनकी सभी सखियाँ दूर झुण्ड में किलोल कर रहीं थीं । तभी देखा कि श्याम सुंदर नारद जी से कुछ बतिया रहे हैं ।।
अब हमारी श्री जूं को क्या सूझी वो छिपकर उनकी बातें सुनने लगीं । नारद जी कह रहे थे कि जहाँ भी मैं जाता हूँ पूरे ब्रज में हरे कृष्ण हरे कृष्ण की गूँज ही केवल सुनाई देती है ।।
नारद जी की बात सुनकर ठाकुर जी ने कहा - कि नारद जी ! परंतु मुझे तो मेरी प्यारी राधे जूं का नाम ही प्रिय है । इतना सुनते ही राधा जी की आँखों में आँसुओं की धार बहने लगी ।।
प्यारी राधा जूं वहाँ से तत्क्षण अपने महल में लौटीं और सभी तोतों को सुनाकर जोर-जोर से राधे राधे कहने लगीं । सखियों को आश्चर्य हुआ परन्तु सखियाँ उनके मन के भावों को समझ गयीं ।। फिर भी सखियों ने कहा कि लोग तुम्हें अभिमानी कहेंगे कि तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहती हो । तब श्रीजूं ने कहा मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं यही नाम लूँगी, जिसे जो कहना हो कहे ।।
।। जय जय श्री राधे ।।
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।। नमों नारायण ।।
अब आप तोतों के स्वाभाव तो जानते ही हैं, वे तोते भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण बोलने लगे । इतना ही नहीं, राधा रानी की सभी सखियाँ भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण सदैव बोलती रहतीं थीं ।।
मित्रों, एक दिन राधा जी यमुना किनारे ऐसे ही विचर रहीं थीं एवं उनकी सभी सखियाँ दूर झुण्ड में किलोल कर रहीं थीं । तभी देखा कि श्याम सुंदर नारद जी से कुछ बतिया रहे हैं ।।
अब हमारी श्री जूं को क्या सूझी वो छिपकर उनकी बातें सुनने लगीं । नारद जी कह रहे थे कि जहाँ भी मैं जाता हूँ पूरे ब्रज में हरे कृष्ण हरे कृष्ण की गूँज ही केवल सुनाई देती है ।।
नारद जी की बात सुनकर ठाकुर जी ने कहा - कि नारद जी ! परंतु मुझे तो मेरी प्यारी राधे जूं का नाम ही प्रिय है । इतना सुनते ही राधा जी की आँखों में आँसुओं की धार बहने लगी ।।
प्यारी राधा जूं वहाँ से तत्क्षण अपने महल में लौटीं और सभी तोतों को सुनाकर जोर-जोर से राधे राधे कहने लगीं । सखियों को आश्चर्य हुआ परन्तु सखियाँ उनके मन के भावों को समझ गयीं ।। फिर भी सखियों ने कहा कि लोग तुम्हें अभिमानी कहेंगे कि तुम अपने नाम की जय बुलवाना चाहती हो । तब श्रीजूं ने कहा मेरे प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं यही नाम लूँगी, जिसे जो कहना हो कहे ।।
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