जय श्रीमन्नारायण,
आशया बद्ध्यते लोकः कर्मणा परिबद्ध्यते ।आयुःक्षयं न जानाति तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- उम्मीद पर अपने नित्य कर्म में बैल की तरह जूते हुए मनुष्य का दिनोदिन आयु कम होता जा रहा है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
जन्मदुःखं जरादुःखं जायादुःखं पुनः पुनः ।
अंतकाले महादुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- जन्म लेते दुःख, रोगों से दुःख, जीने में दुःख ही दुःख और अंत समय मृत्यु काल में महादु:ख । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
कामक्रोधौ लोभमोहौ देहे तिष्ठन्ति तस्कराः ।
ज्ञानरत्नापहाराय तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- काम, क्रोध, लोभ और मोह रूपी शत्रु (चोर) जो ज्ञान (विवेक) रूपी धन को चुराने में हर समय लगे हुए हैं । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
ऐश्वर्यं स्वप्नसंकाशं यौवनं कुसुमोपमम् ।
क्षणिकं जलमायुश्च तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- ऐश्वर्य एक स्वप्न की तरह, जवानी कोमल पुष्प की तरह और तपती रेत पर पड़ने वाले पानी के बूंद की तरह आयु है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
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जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
।। नमों नारायण ।।
आशया बद्ध्यते लोकः कर्मणा परिबद्ध्यते ।आयुःक्षयं न जानाति तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- उम्मीद पर अपने नित्य कर्म में बैल की तरह जूते हुए मनुष्य का दिनोदिन आयु कम होता जा रहा है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
जन्मदुःखं जरादुःखं जायादुःखं पुनः पुनः ।
अंतकाले महादुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- जन्म लेते दुःख, रोगों से दुःख, जीने में दुःख ही दुःख और अंत समय मृत्यु काल में महादु:ख । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
कामक्रोधौ लोभमोहौ देहे तिष्ठन्ति तस्कराः ।
ज्ञानरत्नापहाराय तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- काम, क्रोध, लोभ और मोह रूपी शत्रु (चोर) जो ज्ञान (विवेक) रूपी धन को चुराने में हर समय लगे हुए हैं । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
ऐश्वर्यं स्वप्नसंकाशं यौवनं कुसुमोपमम् ।
क्षणिकं जलमायुश्च तस्मात् जागृहि जागृहि ।।
अर्थ:- ऐश्वर्य एक स्वप्न की तरह, जवानी कोमल पुष्प की तरह और तपती रेत पर पड़ने वाले पानी के बूंद की तरह आयु है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।
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