जय श्रीमन्नारायण,
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२.किसी भी व्यक्ति को वह स्थान भी त्याग देना चाहिए, जहाँ आजीविका न हो ! क्योंकि आजीविका रहित मनुष्य, समाज में किसी सम्मान के योग्य नहीं रह जाता !!
३.हर मनुष्य को सभी विद्याओं में निपुण होना चाहिऐ ! बडे लोगों से विनम्रता, विद्वानों से श्रेष्ठ और मधुर ढंग से वार्तालाप का तरीक सीखना चाहिए ! जुआरियों से झूठ बोलना और कुशल स्त्रियों से चालाकी का गुण सीखना चाहिए !!
४.लेकिन मनुष्य को ऐसे कर्म करना, चाहिए जिससे उसकी कीर्ति सब और फैले ! विद्या, दान, तपस्या, सत्य भाषण और धनोपार्जन के उचित तरीकों से कीर्ति दसों दिशाओं में फैलती है !!
५.अपना जीवन शांतिपूर्वक बिताने के लिए हर मनुष्य को धर्म-कर्म का अनुष्ठान करते रहना चाहिए ! लेकिन यज्ञादि, हर मनुष्य के लिए आवश्यक कर्म है ! क्योंकि वह घर मुर्दाघर के समान हैं, जहाँ धर्म-कर्म या यज्ञ-हवन नहीं होता ! जहाँ वेद शास्त्रों का उच्चारण नहीं होता, विद्वानों का सम्मान नहीं होता और यज्ञ-हवन से देवताओं का पूजन नहीं होता ऐसे घर, घर न रहकर शमशान के समान हो जाते हैं !!!
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ऐसा हमारे महान दार्शनिक - आचार्य चाणक्य का मानना है, जो मेरे अनुभव में भी सत्य बैठता है ! तथा आप भी अपना अनुभव अवश्य बताएं !!!
!!!! नमों नारायण !!!!
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