वर्ष में एक बार पंद्रह दिनों तक कब और क्यों बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ ।। - स्वामी जी महाराज.

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वर्ष में एक बार पंद्रह दिनों तक कब और क्यों बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ ।।

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वर्ष में एक बार पंद्रह दिनों तक कब और क्यों बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ ।। Varsh Me Pandrah Dino Ke liye Kyo Padate Hai Bimar Bhagwan Jagannath.


जय श्रीमन्नारायण,

मित्रों, रथयात्रा से ठीक पंद्रह दिन पहले से लेकर पन्द्रह दिनों तक अर्थात कल से पड़ जायेंगे भगवान जगन्नाथ बीमार अगले 15 दिन तक । क्योंकि 15 दिन बाद होगी भगवान जगन्नाथ जि की रथयात्रा । आइये आज इस विषय में विस्तृत जानते हैं, कि क्यों पड़ते हैं श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार ?।।

उड़ीसा प्रान्त के जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे । जिनका नाम श्री माधव दास जी था । अकेले ही रहते थे संसार से इनको कुछ लेना देना नहीं था । अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना सखा मानते थे और उन्हीं प्रभु के साथ बाल क्रीड़ायें किया करते थे ।।

प्रभु भी इनके साथ अनेकों लीलायें किया करते थे । कहा जाता है, कि प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे । भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे । एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया । वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे ।।



परन्तु फिर भी जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नहीं थे । कोई कहे भी कि महाराजजी हम कर दे आपकी सेवा तो कहते नहीं मेरे तो एक जगन्नाथ ही है वही मेरी रक्षा करेंगे । ऐसी दशा में जब उनका रोग बहुत बढ़ गया और वो उठने बैठने में भी असमर्थ हो गये ।।

तब भगवान श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुँचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दे । भक्तों के लिए तो आपने क्या क्या नही किया । क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नहीं चलता था की कब मल मूत्र त्याग देते थे और वस्त्र गंदे हो जाते थे ।।

उन गन्दे वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथो से साफ करते थे । उनके पुरे शरीर को साफ करते और उनको स्वच्छ करते थे । कोई अपना भी इतनी सेवा नहीं कर सके, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करी है ।।

जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं । तब एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ ही लिया प्रभु से कि प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो । आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे ? रोग दूर कर देते तो ये सब करना भी नहीं पड़ता ?।।



ठाकुरजी ने कहा - देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता । इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की । जो प्रारब्द्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है । अगर उसको काटोगे तो इस जन्म में नहीं तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा ।।

मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्द्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े । इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की परन्तु फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता । विश्वास करना भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्द्ध के दु:खों और कष्टों से सहज ही पार कर देते है प्रभु ।।

भगवान ने कहा अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है । इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे । 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदास जी से ले लिया । यही कारण है, कि आज भी इसलिए भगवान जगन्नाथ वर्ष में एक बार पन्द्रह दिनों के लिये बीमार पड़ते हैं ।।

यह तो तब की बात है परन्तु आज भी भगवान जगन्नाथ कि भक्त वत्सलता देखो । आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते है) । स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है ।।



15 दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है । कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती पर इन 15 दिनों के लिए उनकी रसोई भी बंद कर दी जाती है । भगवान को 56 भोग का भोग नही लगाया जाता क्योंकि बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा । इन दिनों में प्रभु को काढों का भोग लगाया जाता है ।।

15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढों का भोग लगता है । इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है । जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं । काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है । वहीं रोज शीतल लेप भी लगाया जाता है ।।

बीमारी के दौरान उन्हें फलों का रस एवं छेना आदि का भोग लगाया जाता है । रात्रि शयन से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है । भगवान जगन्नाथ अभी बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे । आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद रहता है और उनकी सेवा की जाती है ताकि वे जल्दस्वस्थ हो जाएं ।।

जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है । जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते है । खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तों का जीवन सुखमय बनाये ऐसे तो सिर्फ मेरे भगवान जगन्नाथ ही हो सकते है । जगतो नाथः = जगन्नाथः अर्थात जो जगत का नाथ अर्थात स्वामी हैं, वही तो हमारे प्रभु जगन्नाथ हैं ।।

प्रेम से बोलो जय जगन्नाथ ।।

नारायण सभी का नित्य कल्याण करें । सभी सदा खुश एवं प्रशन्न रहें ।।
जय जय श्री राधे ।।
जय श्रीमन्नारायण ।।


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