मनुस्मृति का सच ।। Manusmriti Ka Sach.
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आजकल मैं बहुत देखता हूँ, कुछ लोग मनुस्मृति के विषय को लेकर काफी वाद-विवाद करते रहते हैं । लेकिन मुझे लगता है, कि मेरे ऐसे मित्रों को मनु जी को गंभीरता से समझना चाहिए ।। आइये प्रमाण के तौर पर एक श्लोक को देखें, कि वास्तव में मनु जी कहना क्या चाहते हैं हमें और हमारे सम्पूर्ण मानव समाज के विषय में ।।
शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुर्मृदुवागऽनहङ्कृतः ।।
ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते ।।३३५।। (मनुस्मृति - अध्याय ९) अर्थ:- स्वच्छता से रहने वाला, उद्यमी, मधुर वाणी बोलने वाला, अहंकार रहित श्रेष्ठजनों की सेवा करनेवाला एक अधम कुल में उत्पन्न हुआ व्यक्ति भी उच्च कुल को प्राप्त हो जाता है ।।३३५।।
इस श्लोक का साधारण अर्थ आप सभी के सम्मुख है । अब आप इस श्लोक के द्वारा मनु जी के विचारों को इस श्लोक के भावार्थ के माध्यम से जो मेरा दृष्टिकोण भी है, से समझने का प्रयास करें ।। मेरी समझ में इस श्लोक के माध्यम से शायद मनु जी महाराज ये कहना चाहते हैं, कि हमारे यहाँ कोई वर्ण व्यवस्था नहीं है और हमें लगता है कि शायद आज भी अभी भी नहीं है । जो व्यवस्था हमें दिखती है, ये व्यवस्था हमारे समाज को सुखी और खुशहाल जिंदगी देने के उद्देश्य से बनाया गया है ।।
लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी वर्ण का हो, अगर वह सामाजिकता को अपनाता है तो समाज का श्रेष्ठ व्यक्ति अवश्य बन सकता है ।। क्योंकि पहले लोग जो चोरी करने और समाज से छिपकर समाज को नुकशान पहुँचाने का कार्य करते थे अथवा आज भी करते हैं, शायद उनके लिए ही वर्ण व्यवस्था बनाया गया था । लेकिन फिर भी हमारी वर्ण व्यवस्था के माध्यम से उनको हमारे उच्च वर्णों के समाज में भी स्थान प्राप्त था । वो भी हमारे समाज से बहिष्कृत नहीं थे ।।
किसी भी मत को हम किस रूप में प्रदर्शित करते हैं, अथवा उसका अर्थ किस रूप में हम लेते हैं ये हमारे उपर है । हम अथवा हमारे किसी भी ऋषियों ने कभी भी किसी भी समाज को तोड़ने के लिए कहीं भी कुछ भी नहीं लिखा है ।। हाँ ये अवश्य है, कि हमारे ही कुछ लोगों की नासमझी के वजह से हमारा समाज विखरता चला गया और आज भी बिखर रहा है । लेकिन हमें हमारे समाज को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए जितना हो सके ।।
।। नारायण सभी का कल्याण करें ।।
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जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
।। नमों नारायण ।।
जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, आजकल मैं बहुत देखता हूँ, कुछ लोग मनुस्मृति के विषय को लेकर काफी वाद-विवाद करते रहते हैं । लेकिन मुझे लगता है, कि मेरे ऐसे मित्रों को मनु जी को गंभीरता से समझना चाहिए ।। आइये प्रमाण के तौर पर एक श्लोक को देखें, कि वास्तव में मनु जी कहना क्या चाहते हैं हमें और हमारे सम्पूर्ण मानव समाज के विषय में ।।
शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुर्मृदुवागऽनहङ्कृतः ।।
ब्राह्मणाद्याश्रयो नित्यमुत्कृष्टां जातिमश्नुते ।।३३५।। (मनुस्मृति - अध्याय ९) अर्थ:- स्वच्छता से रहने वाला, उद्यमी, मधुर वाणी बोलने वाला, अहंकार रहित श्रेष्ठजनों की सेवा करनेवाला एक अधम कुल में उत्पन्न हुआ व्यक्ति भी उच्च कुल को प्राप्त हो जाता है ।।३३५।।
इस श्लोक का साधारण अर्थ आप सभी के सम्मुख है । अब आप इस श्लोक के द्वारा मनु जी के विचारों को इस श्लोक के भावार्थ के माध्यम से जो मेरा दृष्टिकोण भी है, से समझने का प्रयास करें ।। मेरी समझ में इस श्लोक के माध्यम से शायद मनु जी महाराज ये कहना चाहते हैं, कि हमारे यहाँ कोई वर्ण व्यवस्था नहीं है और हमें लगता है कि शायद आज भी अभी भी नहीं है । जो व्यवस्था हमें दिखती है, ये व्यवस्था हमारे समाज को सुखी और खुशहाल जिंदगी देने के उद्देश्य से बनाया गया है ।।
लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी वर्ण का हो, अगर वह सामाजिकता को अपनाता है तो समाज का श्रेष्ठ व्यक्ति अवश्य बन सकता है ।। क्योंकि पहले लोग जो चोरी करने और समाज से छिपकर समाज को नुकशान पहुँचाने का कार्य करते थे अथवा आज भी करते हैं, शायद उनके लिए ही वर्ण व्यवस्था बनाया गया था । लेकिन फिर भी हमारी वर्ण व्यवस्था के माध्यम से उनको हमारे उच्च वर्णों के समाज में भी स्थान प्राप्त था । वो भी हमारे समाज से बहिष्कृत नहीं थे ।।
किसी भी मत को हम किस रूप में प्रदर्शित करते हैं, अथवा उसका अर्थ किस रूप में हम लेते हैं ये हमारे उपर है । हम अथवा हमारे किसी भी ऋषियों ने कभी भी किसी भी समाज को तोड़ने के लिए कहीं भी कुछ भी नहीं लिखा है ।। हाँ ये अवश्य है, कि हमारे ही कुछ लोगों की नासमझी के वजह से हमारा समाज विखरता चला गया और आज भी बिखर रहा है । लेकिन हमें हमारे समाज को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए जितना हो सके ।।
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