गंगाजी की महिमा जानें ।। Gangaji Ki Mahima. - स्वामी जी महाराज.

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गंगाजी की महिमा जानें ।। Gangaji Ki Mahima.

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जय श्रीमन्नारायण,


गंगा का सदा सेवन करना चाहिये  वह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं  जिनके बीच से गंगा बहती हैं, वे सभी देश श्रेष्ठ तथा पावन हैं  उत्तम गति की खोच करनेवाले प्राणियों के लिये गंगा ही सर्वोत्तम गति हैं ।।

गंगा का सेवन करने पर वह माता और पिता – दोनों के कुलों का उद्धार करती हैं । एक हजार चान्द्रायण- व्रत की अपेक्षा गंगाजी के जल का पीना उत्तम हैं । एक मास गंगाजी का सेवन करनेवाला मनुष्य सब यज्ञों का फल पाता हैं ।।

गंगा देवी सब पापों को दूर करनेवाली तथा स्वर्ग लोक देनेवाली हैं । गंगा के जल में जब तक हड्डी पड़ी रहती है, तब तक वह जीव स्वर्ग में निवास करता हैं । अंधे आदि भी गंगाजी का सेवन करके देवताओं के समान हो जाते हैं ।।

गंगातीर्थ से निकली हुई मिटटी धारण करनेवाला मनुष्य सूर्य के समान पापों का नाशक होता हैं  जो मानव गंगा का दर्शनस्पर्शजलपान अथवा ‘गंगा’ इस नाम का कीर्तन करता हैंवह अपनी सैकड़ो-हजारों पीढ़ियों केपुरुषों को पवित्र कर देता हैं  अग्निपुराणअध्याय – ४३

कलियुग में गंगाजी की विशेष महिमा है  कलियुग में तीर्थ स्वभावतः अपनी अपनी शक्तियों को गंगाजी में छोड़ते है परन्तु गंगा जी अपनी शक्तियों को कही नहीं छोड़ती 


गंगाजी पातको के कारण नर्क में गिरनेवाले नराधम पापियों को भी तार देती है । कई अज्ञात स्थान में मर गये हो और उनके लिए शास्त्रीय विधि से तर्पण नहीं किया गया हो तो ऐसे लोगो की हिड॒डयॉयदि गंगाजी में प्रवाहित करते है तो उनको परलोक में उत्तम फल की प्राप्ति होती है ।।

बासी जल त्याग देने योग्य माना गया है परन्तु गंगाजल बासी होने पर भी त्याज्य नहीं है 
इस लोक में गंगा जी की सेवा में तत्पर रहनेवाले मनुष्य को आधे दिन की सेवा से जो फल प्राप्त होता है वह सेकड़ो यज्ञोद्वारा भी नहीं मिलता है । (नारद पुराण)

देव तथा ऋषियों के स्पर्श से पावन हुआ एवं हिमालय से उद्गमित नदियों का जलविशेषकर गंगाजल स्वाथ्यकारीअर्थात आरोग्य के लिए हितकारी है 
"हिमवत्प्रभवाः पथ्याः पुण्या देवर्षिसेविताः 
– चरकसंहितासूत्रस्थानअध्याय २७श्लोक २०९

हिमालय से प्रवाहित गंगाजल औषधि (रोगी के लिए हितकारीहै |
"यथोक्तलक्षणहिमालयभवत्वादेव गाङ्गं पथ्यम् 
– चक्रपाणिदत्त (वर्ष १०६०)

(श्रीशुकदेवजी ने परीक्षित् से कहा ) राजन् ! वह ब्रह्माजी के कमण्डलुका जलत्रिविक्रम (वामनभगवान् के चरणों कोधोने से पवित्रतम होकर गंगा रूप में परिणत हो गया। वे ही (भगवतीगंगा भगवान् की धवल कीर्ति के समान आकाश से(भगीरथी द्वारापृथ्वी पर आकर अब तक तीनों लोकों को पवित्र कर रही है।
"धातुकमण्डलुजलं तदरूक्रमस्पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र  स्वर्धन्यभून्नभसि सा पतती निमार्ष्टि, लोकत्रयंभगवतो विशदेव कीर्ति।।
श्रीमद्भा0 8421) 

देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली है | आप जीवनरुपा है | आप आधिभौतिक,आधिदैविक औरआध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं | आपको बार बार नमस्कार है 
"संसारविषनाशिन्ये जीवनायै नमोऽस्तु ते  तापत्रितयसंहन्त्रयै प्राणेश्यै ते नमो नम : 

विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल कापरीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण हैउसेदेखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे 

सन् १९४७ में जलतत्त्व विशेषज्ञ को ही मान भारत आया था । उसने वाराणसी से गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षणकरके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है ।।

दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् १९२४ में ही गंगाजल कोविश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था 
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‘आइने अकबरी में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृतमानते थे । औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।।

कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं । अंग्रेजयह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगडता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब होजाता है ।

अभी रुडकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्वविद्यमान हैं ।।


फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशकऔषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणुहैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा ।।



संत तुलसीदासजी कहते हैं :

गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : ८६.२)


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।। सदा सत्संग करें । सदाचारी और शाकाहारी बनें । सभी जीवों की रक्षा करें ।।

।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।

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।। नमों नारायण ।।
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