गंगा- तीर्थ से निकली हुई मिटटी धारण करनेवाला मनुष्य सूर्य के समान पापों का नाशक होता हैं । जो मानव गंगा का दर्शन, स्पर्श, जलपान अथवा ‘गंगा’ इस नाम का कीर्तन करता हैं, वह अपनी सैकड़ो-हजारों पीढ़ियों केपुरुषों को पवित्र कर देता हैं ।। अग्निपुराण, अध्याय – ४३
कलियुग में गंगाजी की विशेष महिमा है । कलियुग में तीर्थ स्वभावतः अपनी अपनी शक्तियों को गंगाजी में छोड़ते है परन्तु गंगा जी अपनी शक्तियों को कही नहीं छोड़ती ।।
बासी जल त्याग देने योग्य माना गया है परन्तु गंगाजल बासी होने पर भी त्याज्य नहीं है ।
इस लोक में गंगा जी की सेवा में तत्पर रहनेवाले मनुष्य को आधे दिन की सेवा से जो फल प्राप्त होता है वह सेकड़ो यज्ञोद्वारा भी नहीं मिलता है ।। (नारद पुराण)
देव तथा ऋषियों के स्पर्श से पावन हुआ एवं हिमालय से उद्गमित नदियों का जल, विशेषकर गंगाजल स्वाथ्यकारीअर्थात आरोग्य के लिए हितकारी है ।।
"हिमवत्प्रभवाः पथ्याः पुण्या देवर्षिसेविताः ।
– चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २७, श्लोक २०९
हिमालय से प्रवाहित गंगाजल औषधि (रोगी के लिए हितकारी) है |
"यथोक्तलक्षणहिमालयभवत्वादेव गाङ्गं पथ्यम् ।
– चक्रपाणिदत्त (वर्ष १०६०)
(श्रीशुकदेवजी ने परीक्षित् से कहा ) राजन् ! वह ब्रह्माजी के कमण्डलुका जल, त्रिविक्रम (वामन) भगवान् के चरणों कोधोने से पवित्रतम होकर गंगा रूप में परिणत हो गया। वे ही (भगवती) गंगा भगवान् की धवल कीर्ति के समान आकाश से(भगीरथी द्वारा) पृथ्वी पर आकर अब तक तीनों लोकों को पवित्र कर रही है।
"धातु: कमण्डलुजलं तदरूक्रमस्य, पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र । स्वर्धन्यभून्नभसि सा पतती निमार्ष्टि, लोकत्रयंभगवतो विशदेव कीर्ति: ।।
( श्रीमद्भा0 8।4।21)
“देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली है | आप जीवनरुपा है | आप आधिभौतिक,आधिदैविक औरआध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं | आपको बार बार नमस्कार है ।।
"संसारविषनाशिन्ये जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्रयै प्राणेश्यै ते नमो नम : ।।
विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल कापरीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसेदेखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।
‘आइने अकबरी में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृतमानते थे । औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।।
फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशकऔषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणुहैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा ।।
संत तुलसीदासजी कहते हैं :
गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : ८६.२)
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