जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, एक बार की बात है, कि एक ट्रक में एक मन्दिर के लिये कुछ मारबल आदि पत्थर का सामान भरकर जा रहा था । उसमें टाईल्स भी थी और भगवान की मूर्तियाँ भी थी । रास्ते में टाईल्स ने मूर्ती से पूछा ! भाई ऊपर वाले ने हमारे साथ ऐसा भेद-भाव क्यों किया है ?
मूर्ती ने कहा - कैसा भेद भाव ? टाईल्स ने कहा - तुम भी पत्थर मैं भी पत्थर । तुम भी उसी खान से निकले और मैं भी उसी खान से निकला । तुम्हें भी एक ही व्यापारी ने ख़रीदा और बेचा तथा मुझे भी उसी व्यापारी ने ख़रीदा और बेचा । तुम भी उसी मन्दिर में जाओगे जिसमें मैं जा रहा हूँ ।।
परन्तु अन्तर ये है, कि वहां तुम्हारी पूजा होगी और मैं वहाँ पैरों तले रौंदा जाउंगा ! ऐसा क्यों ? मित्रों, उस मूर्ती ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया, बोला मित्र ! जब तराशा जा रहा था तब तुमसे दर्द सहन नही हुआ । तुम टूट गये टुकड़ों में बंट गये और मुझे जब तराशा जा रहा था ! तब मैने अकल्पनीय दर्द सहा ।।
मित्र, मुझपर लाखों हथौड़े बरसाये गये फिर भी मैं रोया नही ! मेरी आँख बनी, कान बने, हाथ बना, पांव बने फिर भी मैं टूटा नहीं । उसके बाद जाकर मेरा रूप निखरा और मैं पूजनीय हो गया । अगर तुम भी दर्द सहते तो तुम भी पूजे जाते मगर तुम टूट गए ।।
इस संसार का अकाट्य सिद्धान्त है, कि यहाँ टूटने वाले सदैव पैरों तले रोंदे जाते है । इसलिये मित्रों, भगवान जब आपको तराश रहा हो तो टूट मत जाना हिम्मत मत हारना । अपनी रफ़्तार से आगे बढते जाना मंजिल अवश्य मिलेगी । केवल धैर्यपूर्वक पुरे लग्न से कर्म करने की आवश्यकता है ।।
किसी ने बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं- मुश्किलें केवल अच्छे लोगों के हिस्से में ही आती हैं क्योंकि वो लोग ही उसे बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं ।। रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा ।
थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफ़िर;
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा।।
(संग्राहक - अनजाना ।।)
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
Swami Dhananjay Maharaj.
Swami ji Maharaj Blog.
Sansthan.
Sansthanam Blog.
।। नमों नारायण ।।
मित्रों, एक बार की बात है, कि एक ट्रक में एक मन्दिर के लिये कुछ मारबल आदि पत्थर का सामान भरकर जा रहा था । उसमें टाईल्स भी थी और भगवान की मूर्तियाँ भी थी । रास्ते में टाईल्स ने मूर्ती से पूछा ! भाई ऊपर वाले ने हमारे साथ ऐसा भेद-भाव क्यों किया है ?
मूर्ती ने कहा - कैसा भेद भाव ? टाईल्स ने कहा - तुम भी पत्थर मैं भी पत्थर । तुम भी उसी खान से निकले और मैं भी उसी खान से निकला । तुम्हें भी एक ही व्यापारी ने ख़रीदा और बेचा तथा मुझे भी उसी व्यापारी ने ख़रीदा और बेचा । तुम भी उसी मन्दिर में जाओगे जिसमें मैं जा रहा हूँ ।।
परन्तु अन्तर ये है, कि वहां तुम्हारी पूजा होगी और मैं वहाँ पैरों तले रौंदा जाउंगा ! ऐसा क्यों ? मित्रों, उस मूर्ती ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया, बोला मित्र ! जब तराशा जा रहा था तब तुमसे दर्द सहन नही हुआ । तुम टूट गये टुकड़ों में बंट गये और मुझे जब तराशा जा रहा था ! तब मैने अकल्पनीय दर्द सहा ।।
मित्र, मुझपर लाखों हथौड़े बरसाये गये फिर भी मैं रोया नही ! मेरी आँख बनी, कान बने, हाथ बना, पांव बने फिर भी मैं टूटा नहीं । उसके बाद जाकर मेरा रूप निखरा और मैं पूजनीय हो गया । अगर तुम भी दर्द सहते तो तुम भी पूजे जाते मगर तुम टूट गए ।।
इस संसार का अकाट्य सिद्धान्त है, कि यहाँ टूटने वाले सदैव पैरों तले रोंदे जाते है । इसलिये मित्रों, भगवान जब आपको तराश रहा हो तो टूट मत जाना हिम्मत मत हारना । अपनी रफ़्तार से आगे बढते जाना मंजिल अवश्य मिलेगी । केवल धैर्यपूर्वक पुरे लग्न से कर्म करने की आवश्यकता है ।।
किसी ने बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं- मुश्किलें केवल अच्छे लोगों के हिस्से में ही आती हैं क्योंकि वो लोग ही उसे बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं ।। रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा ।
थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफ़िर;
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा।।
(संग्राहक - अनजाना ।।)
।। नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।।
Swami Dhananjay Maharaj.
Swami ji Maharaj Blog.
Sansthan.
Sansthanam Blog.
।। नमों नारायण ।।
No comments:
Post a Comment