जय श्रीमन्नारायण,
मित्रों, एक समय की बात है, कि तीन राहगीर अपने-अपने रास्ते जा रहे थे । चलते-चलते अचानक तीनों एक पेड़ के नीचे मिल गए । लम्बी यात्रा थी, सामान भी भरी था इसलिए कुछ देर आराम करने को बैठ गए ।।
तीनो एक साथ बैठे और यहाँ-वहाँ की बाते करने लगे जैसे कौन कहाँ से आया ? कहाँ जाना हैं ? कितनी दुरी हैं ? घर में कौन कौन हैं ? ऐसे कई सवाल जो अजनबी एक दुसरे के बारे में जानना चाहते हैं ।।
तीनों यात्रियों की कद काठी सामान थी परन्तु सबके चेहरे के भाव अलग-अलग थे । एक बहुत थका निराश लग रहा था जैसे सफ़र ने उसे बोझिल बना दिया हो । दूसरा थका हुआ था पर बोझिल नहीं लग रहा था और तीसरा अत्यन्त आनंद में था ।।
एक दूर बैठा महात्मा इन्हें देख मुस्कुरा रहा था । तभी तीनों की नजर महात्मा पर पड़ी और उनके पास जाकर तीनों ने सवाल किया कि वे मुस्कुरा क्यूँ रहे हैं ?।।
इस सवाल के जवाब में महात्माजी ने तीनों से सवाल किया कि तुम्हारे पास दो दो थैले हैं, इन में से एक में तुम्हे लोगो की अच्छाई को रखना हैं और एक में बुराई को बताओ क्या करोगे ?।।
एक ने कहा मेरे आगे वाले झोले में, मैं बुराई रखूँगा ताकि जीवन भर उनसे दूर रह सकूँ और पीछे अच्छाई रखूँगा । दुसरे ने कहा- मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि अच्छा बन सकूँ और पीछे बुराई ताकि उनसे अच्छा बनूँ ।।
तीसरे ने कहा मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि उनके साथ संतुष्ट रहूँ और पीछे बुराई रखूँगा और पीछे के थैले में एक छेद कर दूंगा जिससे वो बुराई का बोझ कम होता रहे हैं और अच्छाई ही मेरे साथ रहे अर्थात वो बुराई को भूला देना चाहता था ।।
यह सुनकर महात्मा जी ने कहा पहले वाले यात्री के विषय में जो सफ़र से थक कर निराश दिख रहा था और जिसने कहा था कि वो बुराई सामने रखेगा । वो इस यात्रा के भांति जीवन से थक गया हैं क्यूंकि उसकी सोच नकारात्मक हैं उसके लिए जीवन कठिन हैं ।।
दूसरा जो थका हैं पर निराश नहीं, जिसने कहा अच्छाई सामने रखूँगा पर बुराई से बेहतर बनने की कोशिश में वो थक जाता हैं । क्यूंकि वो बेवजह की होड़ में हैं ।।
तिसरा जिसने कहा कि वो अच्छाई आगे रखेगा और बुराई को पीछे रखकर उसे भुला देना चाहता हैं । वो संतुष्ट हैं और जीवन का आनंद ले रहा हैं, इसी तरह वो जीवन यात्रा में भी खुश हैं ।।
।। नारायण सभी का कल्याण करें ।।
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।। नमों नारायण ।।
मित्रों, एक समय की बात है, कि तीन राहगीर अपने-अपने रास्ते जा रहे थे । चलते-चलते अचानक तीनों एक पेड़ के नीचे मिल गए । लम्बी यात्रा थी, सामान भी भरी था इसलिए कुछ देर आराम करने को बैठ गए ।।
तीनो एक साथ बैठे और यहाँ-वहाँ की बाते करने लगे जैसे कौन कहाँ से आया ? कहाँ जाना हैं ? कितनी दुरी हैं ? घर में कौन कौन हैं ? ऐसे कई सवाल जो अजनबी एक दुसरे के बारे में जानना चाहते हैं ।।
तीनों यात्रियों की कद काठी सामान थी परन्तु सबके चेहरे के भाव अलग-अलग थे । एक बहुत थका निराश लग रहा था जैसे सफ़र ने उसे बोझिल बना दिया हो । दूसरा थका हुआ था पर बोझिल नहीं लग रहा था और तीसरा अत्यन्त आनंद में था ।।
एक दूर बैठा महात्मा इन्हें देख मुस्कुरा रहा था । तभी तीनों की नजर महात्मा पर पड़ी और उनके पास जाकर तीनों ने सवाल किया कि वे मुस्कुरा क्यूँ रहे हैं ?।।
इस सवाल के जवाब में महात्माजी ने तीनों से सवाल किया कि तुम्हारे पास दो दो थैले हैं, इन में से एक में तुम्हे लोगो की अच्छाई को रखना हैं और एक में बुराई को बताओ क्या करोगे ?।।
एक ने कहा मेरे आगे वाले झोले में, मैं बुराई रखूँगा ताकि जीवन भर उनसे दूर रह सकूँ और पीछे अच्छाई रखूँगा । दुसरे ने कहा- मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि अच्छा बन सकूँ और पीछे बुराई ताकि उनसे अच्छा बनूँ ।।
तीसरे ने कहा मैं आगे अच्छाई रखूँगा ताकि उनके साथ संतुष्ट रहूँ और पीछे बुराई रखूँगा और पीछे के थैले में एक छेद कर दूंगा जिससे वो बुराई का बोझ कम होता रहे हैं और अच्छाई ही मेरे साथ रहे अर्थात वो बुराई को भूला देना चाहता था ।।
यह सुनकर महात्मा जी ने कहा पहले वाले यात्री के विषय में जो सफ़र से थक कर निराश दिख रहा था और जिसने कहा था कि वो बुराई सामने रखेगा । वो इस यात्रा के भांति जीवन से थक गया हैं क्यूंकि उसकी सोच नकारात्मक हैं उसके लिए जीवन कठिन हैं ।।
दूसरा जो थका हैं पर निराश नहीं, जिसने कहा अच्छाई सामने रखूँगा पर बुराई से बेहतर बनने की कोशिश में वो थक जाता हैं । क्यूंकि वो बेवजह की होड़ में हैं ।।
तिसरा जिसने कहा कि वो अच्छाई आगे रखेगा और बुराई को पीछे रखकर उसे भुला देना चाहता हैं । वो संतुष्ट हैं और जीवन का आनंद ले रहा हैं, इसी तरह वो जीवन यात्रा में भी खुश हैं ।।
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