हे मेरे प्रभु ! संसार में कैसे जीना है वो मुझे नहीं आता ? क्या साधन करना है वो भी मुझे नहीं आता ? क्या जानना और क्या नहीं जानना है वो भी मुझे नहीं पता ? कौन से राह पर मुझे चलना चाहिए तथा कौन से राह पर नहीं चलना वो मुझे समझ नहीं आता । मेरे प्यारे प्रभु सच कहूँ तो मुझे क्या करना है या क्या नहीं करना कुछ समझ नहीं आता । प्रभु जी ! बस मैं तो इतना ही समझता हूँ की मुझे कुछ आए या न आए पर हर पल-हर पहर, हर घड़ी-हर हाल में, सुख-सुख में मुझे बश तेरी याद जरूर आए इतनी कृपा बनाये रखना नाथ ।।
दुःखों का मूल कारण एवं उसकी निवृत्ति का सहज उपाय ।। Sansthanam.
मित्रों, कभी-कभी मन में ये प्रश्न उठता है, जीवन में दुःख क्यों होता है ? अक्सर जहाँ भी जाता हूँ, लोग अपनी तकलीफ़े, अपने दुःख मुझेसे बताने लगते हैं । और बड़ी श्रद्धा, बड़े प्रेम तथा आर्त भाव एवं बड़े उम्मीद भरी नजरों से देखते हुए पूछते हैं, की महाराज कोई उपाय हो तो बताओ । अब उनके दुखों को सुनकर मैं क्या कहूँ, यही सोंचता हूँ, की काश कुछ ऐसा सामर्थ्य होता मेरे पास की मैं इन दुखियों का दुःख दूर कर पाता ।।
किसी ने सच ही कहा है, कि जाकी जैसी भावना तैसी मिले सहाय । एक बार की बात है, मैं कहीं से भागवत जी की कथा करके ट्रेन से आ रहा था । मेरे सामने वाले सिट पर एक महात्मा जी बैठे हुए थे । उनसे बातें की तो यही चर्चा निकली । मैंने यही कहा की काश मेरे पास कुछ ऐसा सामर्थ्य होता की मैं सभी दुखियों का दुःख दूर कर पाता । उन्होंने कहा - स्वामीजी जिनके विचार ऐसे होते हैं, मुझे लगता है, कि उनके पास सामर्थ्य नहीं आता । मैंने पूछा - ऐसा क्यों भगवन् ? तब उन्होंने बताया - कि इस संसार में जो भी आया है अपने कर्मों के फलस्वरूप आया है । तथा उसके जीवन में घटने वाली सम्पूर्ण घटनाएँ उसके अपने कर्मों के फलस्वरूप ही घटती है ।।
लोग दुखी होते हैं इसलिए दुःख होता है, लेकिन दुःख का कारण भी समझना पड़ेगा । पर दुःख आता क्यों है ? मुख्यतः इसके दो कारण होते हैं, एक तो हमारे प्रारब्ध और दूसरा स्वयं हमारे अपने कर्मों के फल । लेकिन मैं प्रारब्ध से अधिक स्वयं अपने कर्मों के फल को ही अपने दुखों का मूल कारण मानता हूँ । लोग अपनी खुशी के लिए दूसरों को कष्ट देना भी शास्त्र सम्मत मान लेते हैं । परन्तु शास्त्र तो कहता है, कि दूसरों को दुख देने वाला मनुष्य इस जन्म में तो क्या आने वाले कई जन्मों तक दु:खी रहता है ।।
मानलिया एक पिता की दो संतानें है, दोनों मजदूरी करके सौ-सौ रुपये प्राप्त करते हैं । उन दोनों में से एक तीस रुपये से घर का खर्च उठाता है और सत्तर रुपये बचा लेता है । इस वजह से उसका आनेवाला भविष्य उज्ज्वल होता है और वो अमीर हो जाता है । दूसरा सौ रुपये में से अस्सी रूपये शराब, वेश्यावृत्ति एवं अन्य दुष्कर्मों में उड़ाता है और बीस रूपये घर लाता है, जिससे उसका घर खर्च भी ढंग से नहीं चलता । परिणाम ये होता है, कि घर में कलह और बच्चों का भविष्य नरक के समान हो जाता है ।।
अब अगर बड़ा भाई कुछ मदद करे भी तो कितना ? गरीबों, दुखियों, लाचारों की मदद करने चाहिएँ हमारा शास्त्र इसके लिए मना नहीं करता है । परन्तु ऐसे लोगों की मदद करना अर्थात् बुरे कर्मों को प्रोत्साहित करना है । इसीलिए हमारा शास्त्र कहता है, कि संतों-महात्माओं, धर्म गुरुओं, ब्राह्मणों की सेवा करो । कारण की ये ऐसे कर्मों में संलिप्त लोगों को सन्मार्ग दिखाने का कार्य करते हैं । परन्तु जब इन्हें इनकी जीविका के लिए ही भटकना पड़ेगा तो ये भी स्वयं अपने जीविकोपार्जन हेतु कुछ भी करेंगे तो फिर तो सामाजिक शान्ति का भंग होना निश्चित ही है ।।
आजकल बहुत सारी चलचित्रों के माध्यम से हमारी युवा पीढ़ी को धर्म के मार्ग से भटकाने का प्रयत्न किया जा रहा है । हम कहते हैं, कि एक फिल्म को बनाने में करोड़ों ही नहीं अपितु अरबों का खर्च लगता है । अगर इन फिल्म बनाने वालों को गरीबी मिटाने की अथवा गरीबों से थोड़ी सी नाम मात्र की भी हमदर्दी होती तो थोड़ा-थोड़ा चंदा ही इकठ्ठा करके पुरे भारत की गरीबी एक वर्ष के अन्दर मिटा देते ।।
लेकिन ये ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि अगर इस देश से गरीबी मिटी और साक्षरता आयी तो फिर इन्हें कोई नहीं पूछेगा । खैर छोड़िये इन बातों को हम बात कर रहे थे गरीबी के मूल कारण की । तो सज्जनों, लोग भले ही दुखी हैं, ये बात सत्य है लेकिन दुखी होकर बैठने वालों का दुःख क्या आप दूर कर सकते हैं ? नहीं न ! तो कोई अगर दु:खी मिले तो उसे अपने विचारों से उसके किए गए कर्मो के कारण और फिर किसी ऐसे कर्म को जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता है, उसे करने से रोकने का प्रयास कीजिये ।।
मित्रों, धर्म की परिभाषा अथवा शास्त्रों के ज्ञान का एकमात्र यही उद्देश्य है, कि लोग सन्मार्ग पर चलें । जिसके फलस्वरूप सामाजिक शान्ति, सभी मनुष्यों में आपसी भाईचारा और सभी का सुखी जीवन । धर्म के माध्यम से यज्ञ करना सभी प्राणियों के लिए उनके प्राण को सुरक्षित करना है । और भी न जाने कितने ऐसे व्यवस्था हैं, जो सम्पूर्ण मानव जीवन को सुचारू रूप से चलाने एवं सभी के सुरक्षित भविष्य को निर्धारित करता है । वरना आई. एस. आई. एस. के कुकृत्यों के रूप में तथाकथित स्वतंत्रता की एक झलक देख ही रहे हैं ।।
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नारायण सभी का नित्य कल्याण करें ।। Sansthanam.
।। नारायण नारायण ।।
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